“विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुद्दों पर हुआ कड़ा विरोध, भारत में बढ़ती असहिषुणता की चर्चा बाहर भी हुई तेज”

विदेश दौरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अब आम बात है। पिछले 18 महीनों के शासनकाल में वह रिकॉर्ड विदेश यात्रा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बन चुके हैं। लेकिन ब्रिटेन की उनकी तीन दिवसीय यात्रा बाकी यात्राओं से अलग रही। यहां एक तरफ स्वागत में लाल कालीन मिला तो दूसरी तरफ विरोध में मोदी नॉट वेलकम, मोदी-मोदी यू कैन नॉट हाइट, यू हैव कमिटेड जिनोसाइड (मोदी का स्वागत नहीं है, मोदी छुप नहीं सकते, आपने नरसंहार किया है) जैसे नारों की गूंज लंदन में रही। ये विरोध लंदन में ही नहीं अमेरिका में भी शुरू हो गया।

अमेरिका के चार शहरों-न्यूयॉर्क, शिकागो, बोस्टन और वॉशिंगटन में 13-14 नवंबर के बीच विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। अमेरिका के इन चार शहरों में यह विरोध प्रदर्शन एलाइंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिल्टी द्वारा भारत में खतरनाक ढंग से बढ़ रही असहिषुणता के खिलाफ आयोजित किए जा रहे हैं।

इस तरह से विरोध प्रदर्शन की शुरुआत लंदन से रही। लंदन में विरोध प्रदर्शनों की कवरेज भी वहां के मीडिया में प्रमुखता से हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभवतः यह पहली विदेश यात्रा रही जिसमें उनके आधिकारिक कार्यक्रम,स्वागत कार्य़क्रम के साथ-साथ उनके विरोध के कार्यक्रमों की इतना चर्चा हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 नवंबर को ब्रिटेन की तीन दिन की यात्रा के दौरान कई समझौते होने हैं। इसके लिए दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात भी अच्छी बताई गई, लेकिन विरोध में उठे मजबूत स्वरों ने तस्वीर का दूसरा पक्ष भी सामने रखा। अब विदेशों में विरोध का सिलसिला चल निकला है। इस दौरान रक्षा, निवेश आदि को लेकर कई अहम समझौते दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते प्रगाड़ हुए। तमाम अन्य देशों की तरह यहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत की जबर्दस्त तैयारियां महीनों से चल रही थीं, लेकिन विरोध में भी खासी तादाद में लोग जुटे। इसने मोदी की ब्रिटेन यात्रा पर गहरा असर डाला। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून को 200 जाने-माने लेखकों ने पत्र लिखकर मांग की कि वह भारतीय प्रधानमंत्री से देश में अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करने की बात करें। अपील करने वालों में सलमान रश्दी, नील मुखर्जी और मेगी गिब्सन जैसे प्रसिद्ध लेखक भी शामिल थे, जिनका ब्रिटेन सहित दुनिया में बहुत नाम है। पेन इंटरनेश्ल संस्था के लैटरपैड पर दिए गए इस पत्र को ब्रिटेन के बुद्धिजीवी तबके में भारत में राजनीति के हिंसा और नफरत के खिलाफ बयान के तौर पर देखा गया।

इसके अलावा 12 नवंबर को आवाज नेटवर्क, साउथ एशिया सोलिडेरिटी, फ्रीडम विदआउट फीयर, कास्ट वॉच यूके, न्यू हैम एशियन वूमेन प्रोजेक्ट सहित कई संगठनों ने मिलकर आयोजित किया गया विरोध मार्च बेहद सफल रहा। लंदन में किसी भी देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ संभवतः इस तरह का यह पहला प्रदर्शन था। आयोजकों में से एक अमृत विल्सन ने आउटलुक को फोन पर बताया कि इसमें बड़ी संख्या में सिख, कश्मीरी, दलित, महिलाएं और छात्र शामिल हुए। इसमें नेपाली और श्रीलंका मूल के नागरिक भी शामिल हुए, उन्हें मोदी की आक्रामक हिंदुत्ववादी विदेशी नीति से दिक्कत थी। नेपाल मूल के लोगों को भारत के रवैये से खासी नाराजगी थी। वे नेपाल में भारत के बढ़ते दखल और हिंदुत्ववादी एजेंडे को थोपने को अपनी संप्रभुता पर हमला मानते हैं।

इस प्रदर्शन में छात्रों ने लंदन में भारतीय डायस्पोरा में हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा लव जिहाद, जातिगत उत्पीड़न के सवाल उठाए। कास्ट वॉच यूके के सतपाल मूमन ने बताया कि जिस तरह से मोदी सरकार भारत में दलितों के उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही है, विश्व हिंदू परिषद जैसे उग्र हिंदुत्व समूह ब्रिटेन में भी जातिगत भेदभाव को खत्म करने वाले कानून को लागू नहीं होने दे रहे हैं। गौरतलब है कि ब्रिटेन की संसद ने जब जातिगत उत्पीड़न को रोकने वाला कानून बनाया था, तो ब्रिटेन में सक्रिय हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसका विरोध किया था। वे इसे हिंदू संस्कृति में हस्तक्षेप मानते रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसी भी विदेश याक्त्रा के दौरान पहली बार विरोध प्रदर्शनों की इतनी चर्चा रही। विरोध में जुटे लोगों का ब्रिटेन में प्रभाव रहा और भारत में साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने, गौमांस की अफवाह पर हत्या, दलित बच्चों के जलाए जाने पर मोदी सरकार के मंत्री के शर्मनाक बयान की चर्चा रही। ब्रिटेन का भारतीय डायस्पोरा मोदी के स्वागत और मोदी के विरोध में खुलकर बंटा। शायद यह विभाजन अब बाकी देशों में भी दिखाई देनी शुरू हो गई है।