वीएचपी, हिंदू सेना संगठन ने किया बवाल, पथराव में एक प्रदर्शनकारी की मौत 

मादीकेरी (कर्नाटक)। 18वीं सदी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान की जयंती पर समारोह आयोजित करने को लेकर फैली हिंसा में एक प्रदर्शनकारी  की मौत हो गई और पुलिसकर्मियों समेत कई अन्य घायल हो गए।

पुलिस ने बताया कि यहां पास के एक इलाके में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा की गई गोलीबारी में एक युवक घायल भी हो गया। पूरे कोडागू जिले में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है और हालात को नियंत्रण में लाने के लिए अतिरिक्त बलों को इलाके में भेजा गया है ।

जयंती समारोहों के आयोजन के समर्थकों और विरोधियों के बीच संघर्ष छिड़ने के बाद सैंकड़ों लोगों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करने के साथ ही आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।

पुलिस के अनुसार राज्य सरकार के पूर्व कर्मचारी कुटप्पा को पथराव के दौरान सिर में चोट लगी और उन्होंने मौके पर ही दम तोड़ दिया।

राज्य सरकार द्वारा पहली बार टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने के लिए राज्यभर में आयोजित समारोहों के बीच हिंसा भड़क उठी है। हालांकि बीजेपी ने इन समारोहों का बहिष्कार किया है क्योंकि कई संगठन टीपू को ‘धार्मिक रूप से कट्टर’ मानते हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ कुछ संगठनों ने कोडागू जिले में आज बंद का आह्वान किया है।

इस बीच, गृह मंत्री जी परमेश्वरा ने कहा कि चामराजनगर और मैसूर जिलों से मादीकेरी के लिए अतिरिक्त बलों को भेजा गया है। उन्होंने साथ ही लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सरकार का पक्ष साफ करते हुए कहा कि वीएचपी और हिंदू सेना संगठन दुविधा की स्थिति पैदा कर सामाजिक वातावरण को खराब करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने एक शख्स की मौत की बात तो मानी लेकिन साथ ही कहा कि उसकी मौत लाठीचार्ज से नहीं बल्कि गिरने की वजह से हुई।

हिंदू संगठनों की तरफ से टीपू को निशाना बनाए जाने पर सिद्धारमैया ने कहा कि इस शासक द्वारा लोगों के धर्मांतरण का कोई सबूत नहीं है। अगर वह हिंदुओं के खिलाफ होते तो हम सभी को बचाते नहीं। उन्होंने कर्नाटक के कई मशहूर मंदिरों की रक्षा की। वह एक देशभक्त थे और अपनी भूमि को प्यार करते थे।

बीजेपी ने इन समारोहों का ‘पूर्ण बहिष्कार’ घोषित किया है और उसका कहना है कि उनकी पार्टी से किसी स्तर पर कोई अधिकारी सरकारी समारोह में भाग नहीं लेगा। इसके साथ ही प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि टीपू एक ‘धर्मान्ध’ और ‘कन्नड़ विरोधी’ था। कई संगठनों और लोगों ने भी दस नवंबर को ‘टीपू सुल्तान जयंती’ मनाने के सरकार के कदम का विरोध किया है ।

टीपू सुल्तान तत्कालीन मैसूर साम्राज्य के शासक थे और उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का घोर शत्रु माना जाता था। वह मई 1799 में ब्रिटिश फौज के हमले से अपने श्रीरंगपटना किले की रक्षा करते हुए मारे गए थे । कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने टीपू की जयंती मनाने के सरकार के फैसले को सही ठहराने के साथ ही उन्होंने इसके विरोध के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और ‘अन्य सांप्रदायिक ताकतों’ की आलोचना की।

मैंगलोर युनाइटेड क्रिश्चियन असोसिएशन ने भी समारोहों का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि तटीय इलाकों में कई गिरिजाघरों को नष्ट करने के लिए टीपू जिम्मेदार थे और साथ ही उनके शासनकाल में ईसाइयों को प्रताड़ित किया गया।