नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने त्योहारों के अवसर पर पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति अरूण कुमार मिश्रा की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद छह माह से 14 माह के तीन नवजातों के परिजनों की ओर से पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का अनुरोध ठुकरा दिया। हालांकि न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह पटाखों के दुष्प्रभावों के संबंध में जागरूकता फैलाने के लिए विज्ञापन जारी करे।
याचिकाकर्ताओं अर्जुन गोपाल, अरव भंडारी और जोया राव भसीन ने दशहरे और दिवाली जैसे त्योहारों पर पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का न्यायालय से अनुरोध किया था। न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पटाखे छोड़ने के संदर्भ में 2005 में ही दिशानिर्देश जारी कर रखे हैं। न्यायालय ने उस वक्त भी आदेश दिया था कि दस बजे रात के बाद पटाखे छोड़ने की अनुमति नहीं होगी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दिवाली के अवसर पर केवल दो घंटे ही पटाखे जलाने की अनुमति देने का न्यायालय से अनुरोध किया, लेकिन उसने इस बारे में फिलहाल कोई नया दिशानिर्देश जारी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि सभी संबंधित पक्षों को सुने बगैर वह ऎसा नहीं कर सकता। हालांकि न्यायालय ने पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार करने के उसके 16 अक्टूबर के आदेश पर अमल नहीं करने को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी भी जताई।
न्यायालय ने सरकार की ओर से पेश हो रहे सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार को निर्देश दिया कि वह केंद्र सरकार को 31 अक्टूबर से 12 नवम्बर तक नियमित रूप से पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में विज्ञापन प्रकाशित और प्रसारित करने की सूचना दें। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने मंगलवार को न्यायालय से कहा था कि वह दिवाली जैसे त्योहार में पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है। सरकार का कहना था कि खुद शीर्ष अदालत ने अपने पुराने आदेश में सुबह छह बजे से 10 बजे रात तक पटाखे छोड़ने की अनुमति दे रखी है।
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