दारूल उलूम निजामिया फंरगी महल में ‘‘शुहादाये दीने ह़क़ व इस्लाहे़ माआशरह’’ के तह़त जलसा

लखनऊ: इस्लाम के दुशमनों ने उसको नुकसान पहुंचाने की विशेष रूप से दो प्रकार की कोशिशें की हैं। एक खुले तौर पर दुशमनी की और दूसरे मित्रता के पर्दे में दुशमनी की, जिसको मुनाफिक़त कहते हैं। यह कहना मुशकिल है कि इस्लाम को खुले दुशमनों ने अधिक नुकसान पहुंचाया या मुनाफिकों ने। जन्नत के नौजवानों के सरदार हजरत हुसैन को भी दोनो प्रकार के दुशमनों ने नुकसान पहुंचाया।

इन शब्दो का इज़हार मौलाना मुफ्ती मौलाना अतीकुर्रहमान अध्यापक दारूल उलूम निजामिया फंरगी महल ने किया।  वह आज इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया फरंगी महल के तत्वाधान में होने वाले दस दिवसीय जलसाहाय ‘‘शुहादाये दीने ह़क व इस्लाहे माआशरह’’ के अन्र्तगत दारूल उलूम फंरगी महल के मौलाना अब्दुर रशीद फरंगी महली हाल में सातवें जलसे को सम्बोधित कर रहे थे। जलसे का आरम्भ दारूल उलूम निजामिया फंरगी महल के अध्यापक मौलाना अब्दुल लतीफ की तिलावत कलाम पाक सु हुआ।

उन्होंने कहा कि मुसलमान अच्छी तरह जानता है कि नबी पाक सल्ल0 के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने दीन की बुनियादी चीजों में जब तबदीली होने लगी तो किस तरह बेचैन हो गए और बेचैनी इतनी बढ़ी कि इसकी निशानदही के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया। यही वजह है कि हजरत हुसैन हक़ की अलामत बन कर उभरे।

मौलाना ने कहा कि हजरत हुसैन रजि॰ की हस्ती ईमान व तक़वा, अल्लाह पर भरोसा, सच्चाई, सब्र व शुक्र, हिम्मत, कुर्बानी, बे खौफी और शहादत के शौक़ जैसी विशेषताआंे की प्रतीक थीं। आप रजि॰ की जीवनी के निर्माण में रसूल अकरम स॰ की शिक्षा व दीक्षा का पूरा असर मिलता है। आप रजि॰ को झूट, दोखे बाजी, गद्दारी, मुनाफिकत, बुजदिली और तमाम बुराइयों से बहुत नफरत थी।

मौलाना ने कहा कि 10 मुहर्रम 61 हि॰ को मैदाने कर्बला में हजरत हुसैन रजि॰ दुनिया को सच्चाई को साबित करने, बातिल को खत्म करने और ईसार व कुर्बानी के जो पैग़ाम दिया वह सबके लिए बेहतरीन नमूना है।

उन्होेंने ने कहा कि सत्य के मार्ग में शहादत का प्राप्त करना अल्लाह की बड़ी नेमत है। इस्लाम की तारीख शुहादाए इस्लाम के खून से रंगीन है।