संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव पर चिंता व्यक्त की और कहा कि वह दोनों पक्षों द्वारा अनुरोध किए जाने पर मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं।

बान के उप प्रवक्ता फरहान हक से जब संवाददाताओं ने भारत और पाकिस्तान के बीच गतिरोध के बारे में पूछा और कहा कि क्या संयुक्त राष्ट्र प्रमुख परमाणु सशस्त्र दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच मतभेदों को सुलझाने में मदद करने के लिए मध्यस्थता का प्रस्ताव रखेंगे, उन्होंने कहा, ‘आप जानते हैं कि कश्मीर के मुद्दे पर महासचिव ने अतीत में क्या कहा है और वह अब भी इस मुद्दे को लेकर चिंतित है लेकिन हमारे पास इस पर कुछ नया कहने के लिए नहीं है।’ हक ने कहा, ‘जहां तक मध्यस्थता की बात है, तो आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थता करने का तरीका यह है कि इसके लिए दोनों पक्षों को अनुरोध करना आवश्यक है।’

महताब ने कहा कि इस साल अप्रैल में प्रतिबंध समिति के नए अध्यक्ष ने संयुक्त राष्ट्र की व्यापक सदस्यता के लिए एक बैठक आयोजित की थी और कहा था कि वह समय-समय पर ऐसी बैठकें आयोजित करते रहेंगे। बीजू जनता दल के सांसद ने कहा, ‘हालांकि उसके बाद से ऐसी कोई बैठक आयोजित नहीं की गई। उनके पूर्ववर्ती ने भी समिति के कामकाज को गोपनीयता के आवरण में रखा।’ अगले महासचिव के चयन में पारदर्शिता की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में सुरक्षा परिषद और महासभा के विशेषाधिकारों पर बहस चल रही है। इसके केंद्र में जो सवाल है, वह परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के और शेष सदस्यों के विशेषाधिकारों से जुड़ा है।

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने परिषद को इस बात के लिए जोर दिया है कि वह महासभा को दो या अधिक नामों की सिफारिश दे। उन्होंने कहा, ‘महासभा की घोषणाएं विशेष तौर पर इसके लिए नहीं हैं। हमारा मानना है कि परिषद के लिए ऐसा करने के लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है।’ उन्होंने अलग-अलग रंगों की पर्चियों का इस्तेमाल करके किए जाने वाले ‘गोपनीय मतदान’ को हटाने के लिए कहा। इस मतदान के जरिए स्थायी सदस्य वीटो का इस्तेमाल उसकी जिम्मेदारी लिए बिना ही कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि परिषद की आधिकारिक बैठकों में चर्चाएं की जानी चाहिए। बेहतर होगा कि ये मुक्त चर्चाएं हों और महासचिव कार्यवाही के बारे में संक्षिप्त रिपोर्टें जारी करें।

उन्होंने इस बात को भी दोहराया कि शांतिरक्षा अभियानों से जुड़े आदेश तय किए जाने से पहले सैनिकों का योगदान कर रहे देशों के साथ विचार विमर्श किया जाए। उन्होंने कहा, ‘अफसोस है कि ऐसा कभी नहीं हुआ। एकबार फिर हम नई शुरूआत के लिए चयनित सदस्यों की ओर देखते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘मैं कहूंगा कि सुरक्षा परिषद को प्रभावित कर रही समस्याएं इसके कामकाज के तरीके से कहीं ज्यादा गहरी हैं। कामकाज के तरीकों पर ध्यान देना उपयोगी है, लेकिन यह परिषद में सुधार का विकल्प नहीं हो सकता। एक ऐसे तरीके से सुधार, जो इसके फैसलों को वैधता और स्वीकार्यता दे ।’