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साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार वापसी स्वागत योग्य क़दम: इरशाद सकाफी

लखनऊ: एक अंग्रेजी दैनिक अख़बार  में विदेशी उपन्यासकार तसलीमा नसरीन की ओर से पुरस्कार वापस करने वाले लेखकों की जिस तरह से आलोचना की गई है वह निंदनीय है.सभी लेखकों ने मुल्क में नफरत , सांप्रदायिकता से पैदा हुए  घटनाओं को लेकर पुरस्कार वापस किए हैं ताकि सरकार उनकी बातों को संजीदगी से लेकर उन शिकायतों को दूर करे जिसके खिलाफ उन्होंने पुरस्कार वापस किए हैं ताकि देश में शांति  और बंधुत्व का माहौल पैदा हो. यह विचार आज यहां एक बयान में तहरीक उलमाए हिन्द  के अध्यक्ष मौलाना इरशाद सक़ाफी ने व्यक्त किये । 

उन्होंने कहा कि जिस तरह से विदेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव लोगों और यहां के लेखकों की आलोचना की है, उससे वह देश में टकराव का माहौल  पैदा करना चाहती है ऐसी औरत को भारत जैसे देश में रहने की अनुमति बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, उनहोने कहा कि तसलीमा नसरीन हमेशा मुसलमानों और शांतिप्रिय लोगों के खिलाफ अपने भाषणों में बोलती और लेखन में लिखती रही है। यह एक विध्वंसक कार महिला  है  जो हमारे देश में अमन-चैन नहीं देखना चाहती है इस औरत को तुरंत देश से बाहर निकाल देना चाहए.मोलाना ने कहा कि देश में जिस तरह के हालात हैं वे किसी से छिपा नहीं है ऐसे में हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि शांति और व्यवस्था का शमा रोशन करे और देश के लेखकों ने सांप्रदायिकता के विरोध जिस तरह से पुरस्कार वापस किए हैं उनका हर मोर्चे पर स्वागत होना चाहिए मोदी सरकार की यह जिम्मेदारी है कि लेखकों के विरोध पर विशेष ध्यान दे। मौलाना ने कहा कि इस समय सांप्रदायिक तत्वों को जड़ से ख़तम करने  की जरूरत है न कि एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का.केंद्र सरकार का यह कहना कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है इस से सांप्रदायिक ताक़तों के मनोबल बढ़ेंगे  मोदी सरकार को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि जब से केंद्र में एनडीए की सरकार सत्तारूढ़ आई है देश में हिंसा की घटनाओं में तेजी से बढौतरी हुई है .अब जब देश का बुद्धिजीवी वर्ग इन हालात से चिंतित होकर विरोध कर रहा है तो केंद्रीय वित्त मंत्री की ओर से उसे कागजी विद्रोह कहकर हलके में लेना और सांप्रदायिकता पर सख्त कार्रवाई न करने से हमारे देश के लेखकों का अपमान होगा।

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