दारूल उलूम निजामिया फरंगी महल में ‘‘शुहादाये दीने ह़क़ व इस्लाहे़ माआशरह’’ के तह़त जलसा

लखनऊ: खौफे खुदा तमाम मुहासिन का सर चश्मा है। जो दिल खुदा पाक के डर से काँपता नही, इससे किसी नेकी की उम्मीद नही हो सकती। हजरत उस्मान गनी रजि0 खौफे खुदा से रोते रहते, मौत, कब्र का ख्याल हमेशा उनको पकडे रहता।

इन ख्यालात का इज्हार मौलाना नईमुर्रहमान सिद्दीक़ी प्रधानाचार्य दारूल उलूम निजामिया रंगी महल ने किया। वह आज इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया के तत्वाधान में दारूल उलूम निजामिया फरंगी महल के मौलाना अब्दुल रशीद फरंगी महली हाल में दस दिवसीय जलसाहाय ‘‘शुहादाये दीने ह़क व इस्लाहे माआशरह’’ के अन्र्तगत तीसरे जलसे को सम्बोधित कर रहे थे।उन्होंने कहा कि तीसरे खलीफा हजरत उस्मान रजि0 के अंदर शर्म व हया की इम्तियाज़ी सिफत थी। आप रजि0 में इस हद तक शर्म व हया थी कि खुद हुजूर करीम सल्ल0 इसका पास व लिहाज रखते थे। एक बार सहाबाक्राम रजि0 बैठे थे। नबी पाक सल्ल0 भी तशरीफ फरमा थेे। जानूए मुबारक का कुछ हिस्सा खुला हुआ था। मालूम हुआ कि हजरत उस्मान रजि0 तशरीफ ला रहे हैं तो आप सल्ल0 संम्भल कर बैठ गए। लोगों ने आप सल्ल0 से इस एहतिमाम की वजह पूछी तो फरमाया कि उस्मान रजि0 की हया से फरिश्ते भी शरमाते हैं।

मौलाना ने कहा कि हजरत उस्मान रजि0 सब्र के पैकर थे। मुसीबतों को निहायत सब्र व सुकून के साथ बर्दाश्त करते थे। शहादत के मौके़ पर चालीस दिन तक जिस सूझ बूझ, जब्त का इज्हार किया वह अपने आप में एक उदाहरण है।

उन्होंने कहा कि इन जलसों का बुनियादी मकसद यह है कि हम सहाबाक्राम रजि0 जैसे पाक व साफ लोगों के जीवन से वाकिफ हों और अपनी जिन्दगी को इन मुबारक साँचों में ढ़ालने की कोशिश करें।

जलसे का आरम्भ दारूल उलूम फरंगी महल के अध्यापक मौलाना अब्दुल लतीफ नदवी की तिलावत कलाम पाक से हुआ। जलसा मौलाना नईमुर्रहमान सिद्दीक़ी की दुआ पर समाप्त हुआ।