नई दिल्ली। संस्कृत और जर्मन भाषा का झमेला जल्द ही सुलझने को तैयार है। भारत में विदेशी भाषा के रूप में केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन भाषा पढ़ाने और जर्मनी में चार भारतीय भाषाओं-हिन्दी, संस्कृत, तमिल और मलयालम को बढ़ावा देने के लिए जल्द ही दोनों देशों के बीच सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर लिए जाएंगे। भारत और जर्मनी दोनों देशों के संयुक्त घोषणा पत्र पर इस आशय पर हस्ताक्षर कर दिए गए हैं।

उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार मानव संसाधन मंत्रालय और गोएथ इंस्टीटयूट के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। समझौते को लेकर विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही है। मानव संसाधन मंत्रालय के अनुसार अगले कुछ माह में एमओयू पर साइन कर लिए जाएंगे। मानव संसाधन मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत केन्द्रीय विद्यालयों में अतिरिक्त विदेशी भाषा के रूप में जर्मन भाषा पढ़ाई जा सकती है। इसका सीधा अर्थ यह यह है कि जर्मन तीसरी भाषा के रूप में नहीं पढ़ाई जा सकती, लेकिन इसे एक अतिरिक्त विषय के रूप में लिया जा सकता है।

तीसरी भाषा संविधान की अनुसूची के तहत आने वाली भाषा ही कोई भारतीय भाषा हो सकती है। एक सूत्र के अनुसार केवल संस्कृत को ही महत्व देने के बजाए जर्मनी वैकल्पिक आधार पर चार भाषाओं को पढ़ाने पर सहमत है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल भारत ने केन्द्रीय विद्यालय संगठन और गोएथ इंस्टीट्यूट के बीच एमओयू के नवीनीकरण से इनकार कर दिया था क्योंकि यह पता चला था कि जर्मन संस्कृत के स्थान पर तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जा रही है।