लखनऊ: लोकपाल संशोधन विधेयक के लटके रहने की सम्भावना बढ़ गयी है। राज्यपाल रामनाईक ने शानिवार को प्रदेश अधिवक्ता परिषद के दो दिवसीय प्रान्तीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि वह लोकपाल संशोधन विधेयक पर विचार कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि केन्द्र के लोकपाल के नियुक्ति के लिए चयन समिति में सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायधीश भी होता है साथ ही तमाम राज्यों में लोकपाल की नियुक्ति हेतु चयन समिति में उस राज्य के हाईकोर्ट का मुख्य न्यायधीश भी होता है। परन्तु बिल पर अंतिम निर्णय लेने से पहले ही सरकार ने लोकपाल की नियुक्ति के लिए बुलाई चयन समिति के बैठक में इलाहाबाद के हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को आमंत्रित कर लिया। श्री नाईक  के उक्त वक्तव्य के बाद इस बात की संभवना बढ़ गई है कि लोकपाल संशोधन विधेयक को शायद ही उनकी सहमति मिले। गत दिनों लोकपाल चयन के लिए बुलाई गयी बैठक में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने कहा था कि बिल पर न्यायिक राय लेने के बाद अगली बैठक बुलाई जाये।

श्री नाईक ने परिषद के सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर आगे कहा कि राज्यपाल प्रदेश में केन्द्र का प्रतिनिधि होता है और ये देखना इसका काम है कि प्रदेश में सारे काम संवैधानिक दायरे में हो रहे है अथवा नहीं उन्होंने कहा कि आंख, नाक, कान बंद रखने वाला राज्यपाल नहीं हूँ। उन्होंने आगे कहा कि संविधान में चैक एवं बेलेन्स की अप्रतिम व्यवस्था है। उन्होनंे कहा कि लोग राजभवन को आरामगाह की जगह समझते है परन्तु मैं तो कानून ढूढ़ता रहता हूं। गन्ना संस्थान डालीबाग के खच्चा-खच भरे हाल में श्री नाईक ने वकीलो को सम्बोधित करते हुए कहा कि एमएलसी नांमाकन की पत्रावली वापस करने में भी उन्होंने परम्परा से अधिक संवैधानिक व्यवस्था को महत्व दिया। 

अधिवक्ता परिषद के सम्मेलन में शिरकत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस शिवकीर्ति सिंह, इलाहाबाद हाईकोर्ट जस्टिस राकेश तिवारी, शास्त्र सेना बल प्राधिकरण के सदस्य जस्टिस देवी प्रसाद सिंह, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के उपाध्यक्ष लाल बहादुर सिंह, परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष शशि प्रकाश सिंह सहित बड़ी संख्या में हाईकोर्ट के जज एवं वकील उपस्थित थे। इस अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता जस्टिस शिवकीर्ति सिंह ने कहा कि वकीलो को समाज के निचले से निचले तबके को भी सम्पूर्ण न्याय दिलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बार काउंसिल को वकीलो की अधिकतम एवं न्यूनतम फीस का नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम उठाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की समय सीमा की लिमिट तय होनी चाहिए। जस्टिस राकेश तिवारी ने कहा कि वकीलो का एक तबका आये दिन हड़ताल और उपद्रव में लगा रहता है जिससे वकालत पेशे की गरिमा गिरती हैं। जस्टिस देवी प्रसाद सिंह ने कहा कि न्यायपालिका में भी भाई-भतीजावाद और जातिवाद की जड़े है। उन्होनंे जातिवादी बाते करने वालो को सरकारी सुरक्षा न देने की बात कही।

शशि प्रकाश सिंह ने कहा कि अधिवक्ता परिषद का मूल उद्देश वकालत पेशे की गरिमा बढ़ाना है। दो दिवसीय कार्यक्रम में विभिन्न चरणों में अपने विचार व्यक्त किये। महिला अधिकार पर बोलते हुए केन्द्र सरकार की वरिष्ठ वकील अनीता अग्रवाल ने कहा कि महिला कानूनो को शक्ति से लागू करने की जरूरत है। मानवाधिकार प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक व वरिष्ठ वकील कुलदीप पति त्रिपाठी ने साइबरक्राइम से निपटने के लिए और सख्त कानूनों की वकालत की। कार्यक्रम में बार काउसिंल के सदस्य रवि सिंह, हाईकोर्ट जस्टिस महेन्द्र दयाल, ए.आर. मसूदी, राजीव शर्मा, राकेश श्रीवास्तव, असिस्टेंट सालिसिटर जनरल एस.बी. पाण्डेय, परिषद के संगठन मंत्री सत्यप्रकाश राय, उपाध्यक्ष एच.जी. उपाध्याय, भाजपा नेता प्रशान्त सिंह अटल, प्रशान्त शर्मा अटल सहित बड़ी संख्या में वकील उपस्थित थे।