लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज गन्ना संस्थान प्रेक्षागृह में अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित प्रदेश अधिवेशन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह उच्चतम न्यायालय, न्यायमूर्ति राकेश तिवारी उच्च न्यायालय इलाहाबाद, न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह सशस्त्र सेवा बल प्राधिकरण, श्री सुरेश कालिया वरिष्ठ अधिवक्ता, श्री शशि प्रकाश सिंह वरिष्ठ अधिवक्ता एवं अध्यक्ष अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश सहित अन्य न्यायमूर्तिगण व अधिवक्तागण उपस्थित थे।

राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वकालत का पेशा शानदार पेशा है। पीडि़तों को न्याय दिलाना तथा कानून के अनुसार कार्य करना अधिवक्ताओं का प्रथम दायित्व है। अधिवक्ताओं को न्यायालय का अधिकारी भी कहा जाता है। आजादी की लड़ाई में अधिवक्ताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी, पं0 जवाहर लाल नेहरू, बालगंगाधर तिलक आदि भी अधिवक्ता थे। जनतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीन स्तम्भ हैं। न्यायपालिका न्यायमूर्ति, न्याय याचक और अधिवक्ता में समन्वय से सफल होती है। वास्तव में बार और बंेच एक दूसरे के पूरक और अभिन्न अंग होते हैं जिनके बिना न्यायिक प्रणाली की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता ऐसी भूमिका में काम करें कि पीडि़त और विपक्ष दोनों को लगे कि उनके साथ न्याय हुआ है।

श्री नाईक ने कहा कि राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं। संविधान के अनुसार काम हो यही देखना राज्यपाल का दायित्व है। संविधान के दायरे में रहकर काम करना मुश्किल काम है। परम्परा, कानून और संविधान में यह महत्व की बात है कि संविधान के अनुसार क्या सही है। देर से न्याय मिलना न्याय न मिलने जैसा है। उन्होंने कहा कि समाज में संविधान और न्यायपालिका के प्रति विश्वास होना चाहिए।

राज्यपाल ने अधिवेशन में उपस्थित अधिवक्ताओं को भारत के संविधान की मूल सुलिखित प्रतिलिपि (हिन्दी संस्करण) के संक्षिप्त इतिहास तथा संविधान में प्रयोग निदर्श-चित्रों की सूची दिखायी। उन्होंने बताया कि संसद भवन में भारत का संविधान की अंग्रेजी प्रति 1955 में आम जनता के अवलोकनार्थ रखी गयी थी। उनके सुझाव पर 1999 से संसद भवन में संविधान की हिन्दी प्रति भी आम जनता के अवलोकनार्थ रखी गयी है। राज्यपाल ने बताया कि संविधान निदर्श चित्रों में 22 प्रकार के चित्र हैं जिनमें श्रीराम की लंका पर विजय, बुद्ध के जीवन की झांकी, सम्राट अशोक द्वारा भारत और विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रसार को चित्रित करता एक दृश्य, अकबर का चित्र और मुगल वास्तुकला, टीपू सुल्तान और लक्ष्मीबाई के चित्र, महात्मा गांधी के चित्र, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और अन्य देशभक्त भारत से बाहर रहकर भारत माता को स्वतंत्र कराने का प्रयास करते हुए एवं हिमालय का दृश्य आदि सम्मिलित हैं।

राज्यपाल ने भारत का संविधान की हिन्दी प्रति दो दिवसीय अधिवेशन में अधिवक्ताओं के देखने हेतु भी दी।