समय अब वाकई बदल गया है. लोग अब हैवानियत में बदलते हुए दिखाई दे रहे है. उनमें न समझने की शाक्ति है और न क्षमता, बस भेड़चाल में मानवता को शर्मसार कर रहे है. और हर समय दरिंदगी की घटना को दिखा रहे है.

यह पंक्तियों नोएडा के उस गांव की है जहां लोगों ने अख़लाक अहमद को मार दिया. सबूत के आधार पर या शक के आधार पर इस पर अभी नहीं कहा गया है लेकिन उस घटना ने इंसानियत को झुका जरूर दिया है. 

सभी बस गलत है, वह मासूम था नहीं होना चाहिए था कहते हुए ही दिखाई दिए. दरअसल यह घटना घटती मानवता और एक दूसरे पहलु की ओर नजर दौड़ाती है जो समाज में तेजी से मेरा धर्म और तेरा धर्म की पैदावार को बढ़ा रहा है.

तेरा धर्म और मेरा धर्म के बीच समाज दो हिस्सों में नजर आ रहा है. जिसमें सोच भी पट गई है. गौरतलब है कि यह पहला मामला नहीं, इससे पहले भी मुज्फ्फर नगर  और दिल्ली के कई स्थानों में इस तरह की धर्म विरोधी दंगे फसाद हुए है.

यह सभी घटनाएं किस वजह हो इस पर कई विचार और उन पर बहस हो सकती है लेकिन बड़ी बात यह है कि लोग कौन सी सोच को साथ में रखना चाहते है.

 तरुणा नेगी