बर्लिन: उर्दू भाषा की सुन्दरता और मिठास को गैर उर्दूदां हलकों में भी कितना पसंद किया जाता है इसका सबूत मुझे एक बार फिर इस सप्ताह मिला जब मुझे मंगलवार को बर्लिन के कोइपीनक क्षेत्र के एक बड़े क्लब रॉबिन हाउस से आमंत्रित किया गया और अपनी नवीनतम जर्मन किताब Dornen und Rosen और उर्दू काव्य संग्रह खिलती कलियों में से कुछ कविताएं पढ़ने और एक कहानी जर्मन भाषा में सुनाने के लिए कहा गया, वहां पर मौजूद श्रोताओं ने केवल कविताओं में निहित संदेश को ही पसंद किया बल्कि उर्दू तशबीहात के जर्मन भाषा में उपयोग और उर्दू भाषा की मिठास और चाशनी को भी विशेष रूप से पसंद किया।
वहां मौजूद अतिथि, केवल जर्मन भाषा में ही कविताओं नहीं सुनना चाहते थे, बल्कि वही कविताएं उर्दू में सुनकर भी आनन्दित हो रहे थे, हांलांकि वहां मौजूद अधिकतर लोग उर्दू भाषा से अनभिज्ञ थे लेकिन उनका कहना था कि यह भाषा आवाज़ की दृष्टि से इतनी सुन्दर और आकर्षक लगती है और कानों में रस घोलती है कि जी चाहता है सुनते ही रहें।
फिर जब वह कविताएं उनके सामने जर्मन भाषा में मैंने और मेरी बेटी नरगिस ने पढ़कर सुनाईं तो हिन्दोस्तान, उसकी सभ्यता और समस्याओं के बारे में अनंत सवाल सामने आए। विशेषकर नज़्म वतन के बारे में कुछ लोगों की धारणा यह थी कि उन्होंने पहली बार मजदूर किसानों और गरीब मनुष्य और शांति के पहलू से इस विषय पर नज्म सुनी है। विशेषकर इस विचार विशेष रूप से पसंद किया गया:
वतन क्या है यह दहक़ां की बरसती आँख में देखो
वतन की शान महनतकश के छलनी हाथ में देखो
और फिर यह संदेश सुनकर वह खुद अपने अतीत में खो गए और वाह वाह की:
वतन के नाम पर औरों की दुनिया मत मिटा देना
सितमगर बन तुम हरफ़े वफा को मत भुला देना
वतन के नाम पर दागे अदावत मत लगा देना
नज़्म एक लड़की और राज़े जिन्दगी आदि के बारे में भी काफी सवाल किए गए और पसंद किया गया, लेकिन सबसे अधिक रुचि उन्होंने कहानी दोहरा मेआर में व्यक्त की और इस विषय पर सवाल किए। यहाँ के लोग पिछले कुछ वर्षों में भारत में होने वाले महिलाओं के साथ अपराध, विशेषकर बलात्कार के बारे में सुनते रहे हैं, उन्हें आश्चर्य था कि यह अपराध कैसे पनप रहे हैं और समाज में उनके खिलाफ कुछ नहीं किया जा रहा है। एक महिला कह रही थी कि भारत में लोग धर्म और माॅरल में विश्वास रखते हैं तो वे ऐसे अपराध कैसे करते हैं। यह तो घोर पाप है।
एक अन्य महिला पूछ रही थी कि सरकार इसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती? कुछ महिलाओं इन बातों के सामाजिक और आर्थिक कारण जानना चाहती थीं। और सबसे आश्चर्य उन्हें इस बात पर था कि दंगों के समय में जब ऐसे अपराध होते हैं और दूसरे धर्मों की महिलाओं की असमतें लूटी जाती हैं तो ऐसे अपराधियों के समान धर्म के लोग उनकी निंदा नहीं करते लेकिन इस बात पर सभी सहमत थे कि यह समस्या केवल एक देश तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि सारी दुनिया में ऐसी ही बर्बर हरकतें हो रही हैं, जिनके खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए।
अंत में स्क्रीन पर बीमा की मदद से उन्हें लखनऊ के शोआ फातिमा गर्ल्स कॉलेज के बच्चों के वार्षिक समारोह की एक लघु फिल्म दिखाई गई और वहां के बच्चों की शिक्षा के बारे में बताया गया। इस अवसर पर सब लोग यह जानकर हैरान थे कि यह बच्चे गरीबी के बावजूद परीक्षा में अच्छे परिणाम प्राप्त करते हैं। क्लब प्रभारी श्रीमती शालर इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने यह सुझाव दिया कि बर्लिन के एक कॉलेज के साथ, जो उनके क्लब के बहुत अच्छे संबंध हैं,
शोआ फातिमा गर्ल्स कॉलेज की साझेदारी स्थापित की जाए। उन्होंने शुआ कॉलेज के बच्चों की पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी कराने में भी रुचि व्यक्त की।
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