प्रायः लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि डाक्टर धरती का भगवान होता है, इसे नकारा भी नहीं जा सकता। जब भगवान अपने भक्तों से चढ़ावा पाकर खुश होता है, तब धरती के भगवान चढ़ावे यानि प्रसाद से परहेज क्यों करें? इसी चढ़ावे को लेकर दोनों में समानता कही जा सकती है। भौतिक शरीर में तरह-तरह की ब्याधियाँ होती रहती हैं, जिनसे निजात पाने के लिए लोग धरती के भगवान यानि डाक्टरों के पास जाते हैं और चढ़ावा चढ़ाकर उन्हें खुश करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

धरती के भगवानों के बारे में जितना कुछ कहा जाए वह कम ही होगा। ऊपर का भगवान पूजालयों में बुत की शकल में रहता है, जबकि धरती का भगवान भव्य अट्टालिकाओं में रहने के साथ-साथ अत्याधुनिक अस्पतालों व क्लीनिकों में रहकर अपने श्रद्धालुओं (मरीजों) का धनादोहन करता है। कुछ इसी तरह के भगवान हमारे जिले के सरकारी अस्पतालों में भी बहुतायत संख्या में विद्यमान हैं। अम्बेडकरनगर जनपद के महात्मा ज्योतिबा फुले संयुक्त जिला चिकित्सालय में तैनात डॉक्टरों द्वारा प्रतिमाह मोटी सैलरी के साथ एन.पी.ए. लिया जाता है, फिर भी इन्हें उससे संतोष नहीं होता है। ये लोग जिला अस्पताल के अपने केबिन में कहने मात्र को बैठते हैं और अपने द्वारा निजी तौर पर संचालित क्लीनिकों में राउण्ड दि क्लाक (चौबीसो घण्टे) डटे रहते हैं।

इस जिला चिकित्सालय के शुरूआती दिनों से तैनात वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. डी.पी. वर्मा ऐसे ही भगवानों की श्रेणी में आते हैं, जिन्हें अत्याधुनिक बंगला, घोड़ा-गाड़ी एवं तिजोरी में रखने के लिए नोटों की गड्डियों की दरकार है और इसके लिए वह किसी भी स्तर पर पहुँचकर सिंगल प्वाइण्ट धनकमाऊ नीत अपनाए हुए हैं। कैसा भगवान और कैसा भक्त? चढ़ावा दो आशीर्वाद पाओ। बातों से पेट नहीं भरने वाला है। घोड़ा घास से दोस्ती करेगा, तो खाएगा क्या? सभी मरीज रिश्तेदार और मित्र हो गए तो हमें भूखो मरना पड़ेगा। माँ बाप ने लाखों रूपए खर्च करके मेडिकल की शिक्षा दिलाई है, उसकी भी भरपाई करनी है, माँ-बाप का ऋण उतारना है। जैसा कि हमें धरती का भगवान माना जाता है, तो मैं धरती का भगवान हूँ और भगवान कभी भूखो नहीं मरता।

डॉ. वर्मा के हाव-भाव और क्रिया-कलाप को देखकर प्रतीत होता है कि इनकी सोच ठीक ऐसी ही है, जैसा ऊपर लिखा गया है। जब मर्जी अपने चैम्बर में बैठकर मरीजों को देख लिया नहीं तो मरीज दर्द से तड़पते रहें इनकी बला से। लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े होकर मरीज घण्टों इनके आने का इन्तजार करता है और अन्ततः थक-हार कर बैरंग अपने घर वापस लौट जाता है, क्योंकि पता चलता है कि आज डाक्टर साहब छुट्टी पर हैं, वार्ड में गये हैं या देर से बैठेंगे आदि….आदि। जबकि होता यह है कि डाक्टर साहब धड़ल्ले से प्राइवेट प्रैक्टिस करके धन समेटने में लगे हुए होते हैं।

चूंकि डॉ. वर्मा जिला अस्पताल के सबसे सीनियर डॉक्टर है, इसलिए जो भी मरीज जिला चिकित्सालय जाने की सोचता है वह यही कहता है कि डॉक्टर डी.पी. वर्मा को दिखाना है। जबकि वहाँ जाने पर पता चलता है कि डॉक्टर वर्मा हैं ही नहीं या फिर अपने किसी अन्य भव्य, आधुनिक आलय में मौजूद रहकर भक्त वत्सल बने चढ़ावा समेट रहे हैं। पता चला है कि देश के कोने-कोने में कई जगहों पर बेशकीमती भूखण्डों एवं चल-अचल सम्पत्तियों के स्वामी डॉ. वर्मा जल्द ही नौकरी को तिलांजलि देने वाले हैं। ऐसी स्थिति में वह किसी सरकारी, विभागीय एवं अन्य दबाव में रहे बिना दोनों हाथों से चढ़ावा बटोरने का काम करेंगे।

यह भी पता चला है कि उनके स्वजातीय अनेकों चिकित्सकों द्वारा निजी क्षेत्र में क्लीनिक संचालित करके खूब कमाई की जा रही है, जिससे उनकी मनःस्थिति डांवा डोल हो चुकी है। वह भी अपने को ‘‘हम किसी से कम नहीं’’ मानते हुए धन कमाने की दौड़ में आगे निकलने को बेताब हैं।

रिपोर्ट- सत्यम सिंह