लखनऊ: जनपद मुरादाबाद के बिलारी के निवासी राबिल हुसैन ने पिछले साल जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी से सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जिले के अनुदानित और वित्तहीन मदरसों के बारे में सूचना मांगी थी, उन्होंने पूछा था कि जिले में कितनें मदरसें है, और वर्ष 2005 से 2015 के बीच कितने मदरसों को तहतानिया, फौकानिया और आलिया स्तर की मान्यता दी गयी है, उन्होंने जिले में संचालित मदरसों के नाम व पतें के साथ उनके पंजीकरण और नवीनीकरण की पूर्ण सूचना भी मांगी थी, साथ ही यह भी जानना चाहा कि सरकार द्वारा संचालित मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत कितने शिक्षकों को मानदेय/वेतन का भुगतान किया जा रहा है।

जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, मुरादाबाद से सूचना न मिलने पर वादी ने राज्य सूचना आयोग में अपील दाखिल की । राज्य सूचना आयुक्त हाफिज उस्मान के आदेश के बाद जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, मुरादाबाद ने सम्बन्धित सूचनाओं को गोपनीय और व्यक्तिगत बताते हुऐ सूचना देने में अपनी असमर्थता जाहिर की है, इस पर राज्य सूचना आयुक्त ने आदेश दिया है कि जो सूचनाएं वादी ने मांगी है, वह न तो गोपनीय है और न हीं व्यक्तिगत सूचना है, यह सरकारी अभिलेख है। सुनवाई के दौरान आरटीआई कार्यकर्ता ने दास्तावेज भी प्रस्तुंत किए, जिससे खुलासा हुआ हे कि जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, मुरादाबाद ने दर्जन भर से अधिक मदरसों को मान्यता दी हैं।

जनपद मुरादाबाद में जिन मदरसों के नाम पर केन्द्र और राज्य सरकार से हर साल अनुदान लिया जा रहा है, वादी के कथन के अनुसार असल में उनका कोई नामोनिशान ही नहीं है, वे मदरसे फर्जी है। ऐसे मदरसों के मिलने वाले अनुदान को अल्पसंख्यक विभाग के कुछ अधिकारी और मदरसा प्रबन्धक मिलकर हड़प रहे है। 

राज्य सूचना आयुक्त श्री हाफिज उस्मान ने इस प्रकरण को गम्भीरता से लेते हुए डीएम, मुरादाबाद को सम्बन्धित मामले की जांच रिपोर्ट आयोग के समक्ष 30 दिन के अन्दर प्रस्तुत करने के आदेश दिए है।