नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाए जाने का विरोध किया है।
ये हलफनामा प्रशांत भूषण की उस याचिका के जवाब में दाखिल किया गया है जिसमें कहा गया था कि सभी 6 राष्ट्रीय पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए क्योंकि इन पार्टियों को ना केवल लोगों से चंदा मिलता है बल्कि सरकार से भी सुविधाएं मिलती हैं।
याचिका में कहा गया था कि केंद्रीय सूचना आयोग ने भी ऐसे आदेश जारी किए थे, लेकिन सरकार और इन पार्टियों ने आदेशों का पालन नहीं किया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और कांग्रेस, बीजेपी समेत 6 पार्टियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामें में कहा है कि राजनीतिक पार्टियां पब्लिक अथॉरिटी नहीं हैं और ना ही उनका गठन संविधान या संसद के बनाए किसी कानून के तहत हुआ है। इनका गठन जनप्रतिनिधि एक्ट 1951 के तहत हुआ है।
अगर पार्टियों को RTI के तहत लाया जाएगा तो वो अंदरूनी कामकाज को प्रभावित करेगा। विरोधी गलत मंशा से आरटीआई दाखिल करते रहेंगे। वैसे भी पार्टियां आयकर के दायरे में हैं और चुनाव आयोग को भी नियमों के तहत जानकारी देने को बाध्य हैं। ऐसे में 2013 का केंद्रीय सूचना आयोग का आदेश सही नहीं है।
उल्लेखनीय है कि देश में आरटीआई आंदोलन के साथ ही तमाम सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के बारे में जानकारी हासिल करने का हथियार लोगों के मिल गया। लेकिन देश के तमाम राजनीतिक दल हमेशा से अपने को इसके दायरे से बाहर बताते रहे हैं और तमाम लोगों ने जनहित में राजनीतिक दलों के बारे में जानकारी को आरटीआई के तहत लाने की मांग लगातार की है।
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