आरिफ नकवी से एक बातचीत

लखनऊ की वैज्ञानिक सुश्री डॉक्टर क़मर रहमान को जर्मनी के शहर रास्टाक विश्वविद्यालय से ऐसा सम्मान दिया गया है, जो अब तक वहां किसी भी भारतीय को नसीब नहीं हुआ। इस विश्वविद्यालय के छह सौ साल के इतिहास में वह उन कुछ विदेशी वैज्ञानिकों में शामिल हैं जिन्हें 2009 में इस विश्वविद्यालय ने आनरेरी डॉक्टरेट की मानद डिग्री प्रदान की है।

रास्टाक शहर जर्मनी के उत्तरपूर्व  में बाल्टिक सागर के पास बंदरगाह है, जो किसी जमाने में पूर्वी जर्मनी के सबसे बड़ा बंदरगाह माना जाता था। वहाँ के विश्वविद्यालय की गिनती दुनिया के माने हुए विश्वविद्यालयों में होता है। डॉक्टर क़मर रहमान हर साल गर्मियों में विज़ीटिंग प्रोफेसर के रूप में वहाँ के छात्रों को पढ़ाने के लिए आती हैं। उनकी गिनती  भारत की दस सबसे बड़ी वैज्ञानिक महिलाओं में भी होती है। 

डॉक्टर क़मर रहमान बहुत ही सभ्य, गरिमामयी और मिलनसार महिला हैं जिन्हें इस बात पर गर्व है कि उनका संबंध लखनऊ और अवध की संस्कृति है। उन्हें उर्दू शायरी से बेहद लगाव है और बातचीत के दौरान बार बार उर्दू शेर के हवाले देती हैं,विशेषकर अली सरदार जाफरी की कविताओं के। मुझे अक्सर उनसे भारत के विभिन्न मुद्दों और विशेष रूप से उर्दू भाषा और साहित्य के मुद्दों पर चर्चा करने के अवसर मिलते रहते हैं और मुझे उनकी व्यापक जानकारी और ज्ञान को देख कर खुशी होती है। विशेष रूप से जब हम उन साहित्यकारों को याद करते हैं जिन्हें हम दोनों जानते हैं|

डॉक्टर रहमान आजकल यहाँ रास्टाक विश्वविद्यालय में एक बार फिर विज़ीटिंग प्रोफेसर के रूप में आई हुई हैं इस बार वह यहाँ एक ऐसे समय आई है जब जर्मनी सख्त गर्मी का सामना कर रहा है। पिछले हफ्ते जब उन्होंने मुझे रास्टाक से फोन किया और अपने आगमन की सूचना दी तो मुझे बहुत खुशी हुई और जी चाहा कि इस बार उनकी सेवाओं पर कुछ लिखूं, ताकि लखनऊ के लोगों को भी मालूम हो कि लखनऊ के नगीनों की बाहर भी कितनी क़दर की जाती है। इसलिए यह संक्षिप्त साक्षात्कार जो मैंने  डॉक्टर क़मर रहमानसे कियाहै, प्रस्तुत कर रहा हूँ:

प्रश्न: कमर रहमान साहिबा, आप यहाँ रास्टाक विश्वविद्यालय में हर साल विज़ीटिंग प्रोफेसर के रूप में पढ़ाने आती हैं। वैसे मुझे याद है कि आप बर्लिन भी आ चुकी हैं। इस बार आप रास्टाक में ऐसे समय आई है जब ग्रीष्मकाल अपने शबाब पर और सारी दुनिया से लोग यहाँ बाल्टिक सागर पर छुट्टियां मनाने के लिए आ रहे हैं। लेकिन आप रास्टाक विश्वविद्यालय में पढ़ाने में व्यस्त हैं। तो यह बताइए कि आप को रास्टाक कैसा लगता है और आप जर्मनी में पहली बार कब आई थीं?

कमर रहमान: जर्मनी में पहली बार 1981 में आई थी। शहर डोसलडोरफ के Institut für Lufthygene  संस्थान के निदेशक  Prof. Schilkotar ने व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था। मुझे याद है। जब मैं फ़्रंकफ़र्ट से डोसलडोरफ कार से जा रही थी तो रास्ते में हर जगह ऐसा लगता था जैसे ‘शोले भड़क रहे हैं। क्योंकि सर्दियों के आने से पेड़ों की पत्तियों नारंगी हो गयी थीं। बड़ा ही आकर्षक दृश्य था। इसके बाद 1994 में DAD के निमंत्रण पर जर्मनी के दक्षिण में Karlsruhe के Toxicology Institute और डोसलडोरफ विश्वविद्यालय के Physiological Chemistry के लिए संस्थान में विज़ीटिंग वैज्ञानिक के रूप में व्याख्यान देने के लिए आई और तीन महीने का गठन किया।

1961 में मैं Karlsruhe में दो महीने Toxicology Institute के निमंत्रण पर निवास किया और ब्लैक फारेस्ट के सुंदर पहाड़ी स्थान Baden Baden को देखने गया, जहां प्रसिद्ध उपन्यासकार Dostovsky ने अपना प्रसिद्ध उपन्यास  Gambler लिखा था।

1996 में रास्टाक विश्वविद्यालय के Cell Biology and Biosystem Technology क्षेत्र के प्रोफेसर डेटमार शफमान ने मुझे व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। बाद में हम CSIR और DFG के साथ कई कार्यक्रम तैयार किये और जैसा कि आप जानते हैं, 1998 से हर वर्ष लगातार यहाँ आती हूँ।

प्रश्न: कमर साहिबा आप जानती हैं कि रास्टाक बाल्टिक तट पर एक प्रमुख शहर है। इस साल आप ऐसे समय में आई हैं जब यहां ऐतिहासिक गर्मी पड़ रही हैं और यह पूरा क्षेत्र पर्यटकों से भरा है। तो इस शहर रास्टाक में आपको कैसा लगता है? आपकी प्रतिक्रिया क्या हैं?

कमर रहमान: नकवी साहब, लखनऊ के बाद रास्टाक मुझे अपना दूसरा घर लगता है। यह सवाल जो आपने किया है अक्सर भारत में लोग मुझसे करते हैं। पूछते हैं कि मैं रास्टाक क्यों जाती हूँ? मेरा जवाब है कि यहाँ मेरे जीवन को स्फूर्ति प्राप्त होती  है। लोग यहां बड़े प्रेम और प्यार से मिलते हैं और खुले दिल से  स्वागत करते हैं। मुझे घर से दूरी का एहसास नहीं होता। मुझे यहाँ पर बौद्धिक और व्यक्तिगत रूप से बहुत कुछ हासिल हुआ है। मैं इस विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और अन्य विद्वानों के साथ स्तरीय पत्रिकाओं में वैज्ञानिक लेख प्रकाशित किए हैं। कई भारतीय और जर्मन PhD स्टूडेंट्स को गाइड किया है। अभी भी स्टूडेंट्स यहां Post Doc. के लिए काम कर रहे हैं।

मैं इस विश्वविद्यालय के  छह सौ साल के इतिहास में पहली भारतीय हूं जिसे ऑनरेरी डॉक्टरेट सम्मान प्राप्त करने का  सौभाग्य प्राप्त किया है। मुझे महान वैज्ञानिक आइन्स्टाइन के साथ मंच शेयर करने पर गर्व है। यहां मेरे अच्छे दोस्त हैं, जो रिश्तेदारों की तरह मेरी चिंता करते हैं।

प्रश्न: क्या आप इन में से कुछ के बारे में कुछ बता सकती हैं?

कमर रहमान: डीटर शियफमान, जिनका मैं उल्लेख कर रही हूँ। अच्छे दोस्त हैं, जिन्होंने मुझे मैक्लीनबर्ग राज्य का पूरा इलाका दिखाया। (जो जर्मनी के उत्तर पूर्वी हिस्से में है) और उसका का इतिहास समझाया। वह मुझे हमेशा बर्लिन एअरपोर्ट पर लेने और छोड़ने आते हैं।

वे असाधारण वैज्ञानिक हैं। निहायत ही शरीफ। व्यावहारिक, निस्वार्थ, दूसरों को हमेशा अवसर देने  वाले] विभिन्न लेख पुस्तकों, रेकार्डों और सिस्टम पर उनके पास भण्डार भरा पड़ा है।

डीटर वाइस, इंस्टिट्यूट के निदेशक और विश्वविद्यालय से supernnauted लेकिन अभी भी रचनात्मक कार्यों में लगे हुए हैं। उन्होंने एक बड़ा  microscopic केंद्र स्थापित किया है, जहां आप विभिन्न कालों के सूक्ष्मयंत्र मिल सकते हैं। वह अपने डिपार्टमेंट के लोगों और स्टूडेंट्स की हमेशा मदद करते हैं।

यूआखीम वेटरन, विश्वविद्यालय के कुलपति, बहुत ही शानदार व्यक्तित्व है। बहुत हंसमुख हैं और उनका बड़ा सम्मान है| बहुत अच्छे मेनेजर भी हैं। अभी हाल में सेवानिवृत्त हुए हैं। अच्छे मददगार दोस्त हैं।

श्रीमती गाबरेयले विटीन, बहुत ही होनहार, सलीकेदार महिला, इंटरनेशनल मेहमानखाना (IBZ) उन्हीं की  निगरानी में स्थापित हुआ है। मुझे इसमें पहली अतिथि के रूप में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

डॉक्टर एलके डोप, एक अभूतपूर्व महिला, अच्छी बेटी, माँ और दोस्त के रूप में, लेकिन इस सब से बढ़कर एक बेहतरीन वैज्ञानिक।

प्रो डॉ वोल्फगैंग शारिक, जो रिक्टर हैं। मेरी उनसे 2009 में पहली बार मुलाकात हुई थी और मुझे तुरंत ही अंदाजा हो गया था कि उनके जैसे ज्ञानी के नेतृत्व में यह विश्वविद्यालय काफी विकास करेगा। वह मुझे हमेशा रास्टिक और इसके इतिहास के बारे में अच्छी अच्छी पुस्तकों के उपहार देते हैं। भई बहुत से  लोग हैं, किन किन का उल्लेख किया।

प्रश्न: जर्मनी और किन किन शहरों में जाने का आपको अवसर मिला है?

कमररहमान: जैसा कि मैं बता चुकी हूँ ब्लैक फारेस्ट क्षेत्र, कारलस रवहे और बादेन बादेन बहुत सुंदर हैं। फ्राई बर्ग भी बहुत सुंदर शहर है। वहां की हर गली पुरानी सभ्यता की कहानी सुनाती है।

हायडल बर्ग जहां मैं सर मोहम्मद इकबाल पर बोली। वहाँ की जर्मन प्रोफेसर उर्दू ऐसे बोल रही थी जैसे लखनऊ हो। (डाक्टरकमर रहमान शायद एक प्रोफेसर का उल्लेख कर रही थीं, जो किसी जमाने में बर्लिन की हम्बोल्ट विश्वविद्यालय में मेरी  शिष्या रह चुकी थी)।

कमर रहमान साहिबा ने बताया कि हाईडल बर्ग में उन्हें विशेष रूप से इकबाल रोड से गुजरते हुए बहुत अच्छा लगा। और वहाँ के किले की पेंटिंग्स बहुत पसंद आई।

उन्होंने कहा कि म्यूनिख में इंग्लिश गार्डन और संग्रहालय उन्हें बहुत पसंद आया और बर्लिन जहाँरहते हैं, वे भी बहुत सुंदर शहर है जहां पार्क से लेकर संग्रहालयों और राजनीतिक इमारतों तक जहां जहां गया मुझे बहुत सुंदर लगा।

प्रश्न: आप लखनऊ कब वापस जाएंगी? आप रास्टिक में लखनऊ की किस बात की कमी महसूस हो रही है?

मुझे अपने लखनऊ के कई अच्छे दोस्त अहबाब याद आते हैं और जब मैं वापस लूटूँगी तो मुझे नीला आकाश, शांतिपूर्ण माहौल और शांत बाल्टिक सागर की याद आएगी।

Interview with Dr. Qamar Rahman

By Arif Naqvi

Berlin, 17.08.2015

Rudolf-Seiffert-Str। 58, 10369 Berlin

E-mail: naqviarifyahoo.com