नई दिल्ली: शिक्षा पर उच्चतम सलाहकार निकाय की दिन भर की बैठक बुधवार को दिल्ली में शुरू हुई, जिसमें कक्षा आठ तक किसी भी छात्र को फेल नहीं करने और दसवीं कक्षा में फिर से बोर्ड की परीक्षा लागू करने पर पुनर्विचार किया जाएगा।

मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में हो रही इस बैठक में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सुझाव दिया कि स्कूलों में छात्राओं को सेनिटरी नेपकिन वितरित किए जाएं, ताकि छात्राओं की पढ़ाई छोड़ने की दर में कमी लाई जा सके।

इस सुझाव का बहुत से राज्यों ने समर्थन किया और सरकार ने प्रतिबद्धता व्यक्त की कि इसे शीघ्र ही लागू किया जाएगा। इस बैठक में नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून का विस्तार उच्चतर स्तर पर कक्षा दस तक और प्री-स्कूल स्तर पर नर्सरी तक किए जाने के प्रस्ताव पर भी विचार किया जाएगा।

एनडीए सरकार के तहत नवगठित शिक्षा संबंधी केंद्रीय सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) की यह पहली बैठक है। बैठक के एजेंडा में प्रस्तावित नई शिक्षा नीति पर विचार होगा, जिसमें राज्यों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। बैठक में राज्यों के शिक्षा मंत्री और सचिवों के साथ साथ शिक्षाविद् एवं सीएबीई के नामित सदस्य भाग ले रहे हैं।

स्मृति ईरानी ने शुरुआती चर्चा में शिक्षा नीति तैयार करने में राज्यों की भागीदारी पर जोर दिया, जबकि स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य अध्ययन से संबंधित कार्यक्रम शामिल किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अध्ययन सामग्री में तस्वीर कंटेंट होना चाहिए। उन्होंने स्कूलों में छात्रों को स्वास्थ्य कार्ड जारी करने की कुछ सदस्यों की सलाह का भी समर्थन किया।

दिनभर चलने वाली बैठक में हालांकि शिक्षा संबंधी सलाहकार बोर्ड उप समिति की रिपोर्ट पर फोकस होगा, जिसने आठवीं कक्षा तक फेल नहीं करने की नीति की समीक्षा करने की सलाह दी थी। समिति ने नीति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और पांचवीं कक्षा से आगे क्लास प्रमोशन पुन: पेश करने की सलाह दी थी।

कुछ राज्य नीति को पहले ही निरस्त कर चुके हैं जो राज्य नियमों में आवश्यक संशोधन कर आरटीई कानून के कार्यान्वयन के साथ प्रभाव में आई थी ।

शिक्षा को छह साल की उम्र से लेकर 14 साल की उम्र के बीच के हर बच्चे के लिए मौलिक अधिकार बनाने वाला आरटीई कानून एक अप्रैल 2010 से प्रभाव में आया था। इसके तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को छोड़कर सभी निजी स्कूलों के लिए 25 प्रतिशत सीटें वंचित तबके के बच्चों के लिए आरक्षित रखना अनिवार्य है।