लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, राम नाईक ने आज लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय इतिहास दर्शन एवं लेखन‘ का उद्घाटन किया। संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग एवं भारतीय इतिहास संकलन समिति के संयुक्त तत्वाधान में किया गया था। इस अवसर पर डाॅ0 एस0बी0 निम्से कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय, प्रो0 शिवनंदन मिश्रा, प्रो0 देवी प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष भारतीय इतिहास संकलन समिति व अन्य विद्वतजन एवं छात्र-छात्रायें उपस्थित थे। 

राज्यपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय इतिहास सही ढंग से सामने आये। इतिहास सत्य पर आधारित हो, तथ्यपरक हो एवं शोध की दृष्टि से ऐसे प्रस्तुत किया जाय जिससे आने वाली पीढ़ी को देश के सही इतिहास की जानकारी हो तथा विश्व के समक्ष भारत की सही तस्वीर प्रस्तुत की जा सके। हमें अपना इतिहास विश्व स्तर पर प्रस्तुत करने की जरूरत है। ऐसी परिभाषा में इतिहास का लेखन हो जिसे पूरा विश्व समझ सके। भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। उन्होंने कहा कि विदेशी आक्रमण के बावजूद भारतीय सभ्यता की सांस्कृतिक परम्परा में निरन्तरता बनी रही। 

श्री नाईक ने कहा कि अंग्रेजी इतिहासकारों का मानना था कि भारतीयों को अपने इतिहास का बोध नहीं है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि जिस राष्ट्र का अपना इतिहास नहीं है उसका इस विश्व में कुछ नहीं है। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय दृष्टि के इतिहास लेखन पर बल दिया था। 1857 के पहले स्वतंत्रता समर को अंग्रेजी हुकुमत ने बगावत बताया था जबकि वास्तविकता यह है कि देश के मतवालों ने भारत को आजाद कराने का पहला शंखनाद किया था। 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी में देश के क्रान्तिकारियों ने जो खजाने पर कब्जा किया था ऐसे क्रान्तिकारियों को अंग्रेजों ने विद्रोही कहकर फांसी की सजा दी। स्वातंत्रय वीर सावरकर ने भी भारतीय दृष्टि से इतिहास लेखन की बात कही थी। उन्होंने कहा कि ऐसी तमाम बातें है जिन्होंने भारतीय दृष्टि से देखने की जरूरत है। 

संगोष्ठी में कुलपति डाॅ0 एस0बी0 निम्से, प्रो0 शिवनंदन मिश्रा, प्रो0 देवी प्रसाद तिवारी सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। राज्यपाल ने इस अवसर पर श्री नरेन्द्र शुक्ल की पुस्तक ‘बागी कलमें‘ व श्री विमलेश त्रिपाठी की पुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग 1857‘ का लोकार्पण भी किया।