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फिल्म समीक्षा: ‘मसान’ सच में एक अविश्वसनीय फिल्म है

मुंबई : कान फिल्म समारोह में पुरस्कार जीतकर पहले ही काफी वाहवाही बटोर चुकी निर्देशक नीरज घेवन की पहली फिल्म ‘मसान’ की कहानी वाराणसी में बुनी गई है जो स्याह होते हुए भी सिनेमा की दृष्टि से उजली है। इस फिल्म की कहानी में हमारी निष्ठापूर्ण सांस्कृतिक निरंतरता के भाव को बहुत ही बारीकी से उकेरा गया है । इसके विश्वसनीय किरदार धीरे-धीरे बड़े होते हैं एवं दर्शकों को निश्चित रूप से प्रभावित करते चलते हैं।

इस फिल्म में काफी ड्रामा है। वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर शवों की अग्नाहुति को पार्श्व में रखकर ‘मसान’ की कहानी में जीवन की कई तह खुलती हैं और यह एक तरह से आंतरिक तौर पर उद्वेलित करने वाली फिल्म है। जहां एक तरफ घाट पर गूंजते अंतिम संस्कार के मंत्रोच्चार पार्श्व में रहते हैं, वहीं मुश्किल में पड़े तीन मुख्य किरदारों के दिल की धड़कनों को भी यह फिल्म महसूस कराती है।

जीवन, मृत्यु, प्यार, पश्चाताप, दु:ख, नैतिकता, विद्रोह, मोक्ष, स्वतंत्रता मनुष्य जीवन की लगभग हर भावना को ‘मसान’ छूती है। देवी पाठक (रिचा चड्ढा) के किरदार के इर्द गिर्द ही ‘मसान’ की सारी कहानी बुनी गई है। वह एक लड़के के साथ एक गुप्त जगह पर जाती है। लड़के से उसकी दोस्ती उस कंप्यूटर कोचिंग सेंटर पर होती है जहां वह काम करती है।

उस गुप्त स्थान पर पुलिस छापा मारती है और इससे घबराया लड़का आत्महत्या कर लेता है। पुलिस का भ्रष्ट कर्मी अपने फोन से देवी का आपत्तिजनक हालत में एमएमएस बना लेता है और उसे धमकाता रहता है कि इसे वह यूट्यूब पर रिलीज कर देगा। इस मामले को दबाने के लिए वह रिश्वत की मांग करता है।

देवी के पिता विद्याधर पाठक (संजय मिश्रा) पूर्व में संस्कृत के विद्वान रह चुके हैं लेकिन अभी घाटों पर अंतिम संस्कार से जुड़े सामानों की बिक्री कर घर चलाते हैं और ऐसे में रिश्वत के तीन लाख रूपये जुटाना उनके लिए आसान काम नहीं है साथ ही उनके साथ काम करने वाले एक अनाथ बच्चे झोंटा (निखिल साहनी) की खतरे में पड़ी जिंदगी की भी उन्हें रक्षा करनी है। फिल्म तेजी से आगे बढ़ती है और एक और पात्र दीपक कुमार (विकी कौशल) की कहानी भी कहती जाती है। वह उस डोम परिवार का सदस्य है जो एक श्मशान घाट चलाता है। दीपक को एक उच्च जाति की लड़की शालू गुप्ता (श्वेता त्रिपाठी) से प्यार हो जाता है और फिर इन दोनों की कहानी भी आगे बढ़ती है।

फिल्म में सभी कलाकार अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं। फिल्म का संगीत इंडियन ओशियन बैंड ने दिया है और गीत को बोल दिए हैं वरूण ग्रोवर ने, इन गीतों में बनारस की मिट्टी की खुशबू है और यह फिल्म के साथ बंधे हुए हैं। ‘मसान’ सच में एक अविश्वसनीय फिल्म है, जो जीवन के कई स्याह पक्षों को दिखाती है फिर भी सिनेमा के खजाने में यह एक उजला नगीना है।

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