नई दिल्ली: 1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इस अर्जी पर सुनवाई करेगा। इसके लिए कोर्ट ने तीन जजों की बेंच बनाई है। याकूब ने याचिका में कहा है कि उसे फांसी नहीं दी जा सकती क्योंकि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट गैर-कानूनी है।
9 अप्रैल को पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी किया गया जबकि क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी। ऐसे में क्यूरेटिव से पहले डेथ वारंट जारी करना गैरकानूनी है, नियमों और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसके लिए 27 मई 2015 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला दिया गया है।
इसके लिए शबनम जजमेंट का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि डेथ वारंट सारे कानूनी उपचार पूरे होने के बाद जारी होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने शबनम और उसके प्रेमी का डेथ वारंट को रद्द किया था। कोर्ट ने दोनों की फांसी को 15 मई को बरकरार रखा था और छह दिनों के भीतर 21 मई को डेथ वारंट जारी हुआ था। 27 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस डेथ वारंट को रद्द कर दिया था। 2010 में अपने परिवार के सात लोगों की हत्या में फांसी की सजायाफ्ता शबनम और सलीम पुनर्विचार, क्यूरेटिव और दया याचिका से पहले ही डेथ वारंट जारी कर दिया गया था।
गौर हो कि सुप्रीम कोर्ट ने दो जून, 2014 को मेमन की मौत की सजा के अमल पर रोक लगाते हुये उसकी याचिका इस सवाल पर विचार के लिये संविधान पीठ को सौंप दी थी कि क्या मौत की सजा के मामले में पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में या चैंबर में सुनवाई होनी चाहिए। मेमन ने इस मामले में उसकी मौत की सजा बरकरार रखने के शीर्ष अदालत के 21 मार्च, 2013 के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था। मुंबई में 12 मार्च, 1993 को एक के बाद एक 13 बम विस्फोट हुये थे जिनमें 350 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी और 1200 लोग जख्मी हुये थे।
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