लखनऊ ब्यूरो
अनेक बार पुरस्कृत उ0 प्र0 जल निगम वर्तमान में प्रबंधन के कुव्यवस्था और अनियमिताओं के कारण जल निगम के कर्मचारी और पेंशनर्स पिछले 5 माह से वेतन और पेंशन से वंचित है। इस सम्बन्ध में उ.प्र. जल निगम संघर्ष समिति के बैनर तले समस्त 19 विभागीय संगठनो द्वारा 14 जुलाई से सांकेतिक रूप से सरकार एवं प्रबंधन के समक्ष समस्यायें रखने के बावजूद समस्याओं का निराकरण न होने से नाराज जल निगम के 24 हजार कार्मिकों ने अब सड़क पर उतरने का निर्णय लिया है।

संघर्ष समिति के बैनर तले प्रान्तीय स्तर पर 9 सितम्बर को एक वृहद प्रान्तव्यापी रैली राजधानी में की जा रही है। इसी दौरान प्रदेशव्यापी आन्दोलन की घोषणा की जाएगी।

यह जानकारी आज संघर्ष समिति के समिति के संयोजक इं. डी.पी. मिश्रा, रामआधार पाण्डेय, इं. वाई.एन. उपाध्यय, इं. एस.पी मिश्रा , अजयपाल सिंह सोमवंशी ,गौरीषंकर सिंह कुशवाहा और राघवेन्द्र गुप्ता,ने संयुक्त रूप से देते हुए दावा किया कि अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री की मंशानुसार हर घर जल मिशन का काम नियमानुसार जल निगम को उसके अनुभव, तकनीकि दक्षता के अनुसार दिया जाता तो निगम पर कार्मिकों की देनेदारी के भुगतान के साथ अगले दस वर्षो का खर्च और निगम में रिक्त लगभग साठ प्रतिशत पदों पर भर्ती सरकार पर बिना किसी वित्तीय खर्च के की जा सकती थी, लेकिन विभाग के आला अफसरों ने मुख्यमंत्री को गुमराह कर निगम में वित्तीय खर्च बढ़ाने के लिए निगम के दो भाग करवा दिये।

उन्होंने इस दौरान मांग रखते हुए कहा कि निगम के बंटवारे का यह पहला प्रयास है, अब तक इसके पहले भी समय समय पर 8 कमेटियाॅ और मंत्री समूह के गठन के बाद सभी द्वारा यही निर्णय लिया गया था कि जल निगम का अस्तित्व बनाए रखा जाए। तथा दूसरी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे कार्याे को भी जल निगम से कराया जाए। जबकि अबकी बार आला अफसरों ने मुख्यमंत्री को गुमराह कर इसे बिना कमेटी, बिना मंत्री समूह के दो भागों में विभाजित करा दिया। संघर्ष समिति ने सरकार के समक्ष मांग रखी कि पहले जल निगम बॅटवारें का आदेश रद्द कर कमेटी और मंत्री समूह गठन कर कार्मिक संघों की आपत्ति और सुझाव के बाद सरकार कोई निर्णय ले। तब तक विभाजन के आदेष को स्थगित रखा जाए।

पत्रकार वार्ता में मौजूद 19 घटक संगठनों के नेता इं. रामसेवक शुक्ला, इं. वी.के. वाजपेयी, इं. गिरीश कुमार, गिरीश कुमार वर्मा, इं. एम.के. भट्ट, इं. नौशाद अहमद, गिरीश यादव,, रामसनेही यादव, आकाष श्रीवास्तव और इं. विकास मिश्रा ने बताया कि संघर्ष समिति की मुख्य मांगोें में जल निगम के कार्मिकों के वेतन/पेंषन की स्थायी व्यवस्था, पाॅच माह से कार्मिकों के वेतन और पेंशन का तत्काल भुगतान कराया जाए। 2016 से सेवानिवृत्त कार्मिकों के देयकों का भुगतान, जल निगम के पुनर्गठन के नाम पर विभाजन सम्बंधी आदेश पर तत्त्काल रोक और पेयजल, सीवरेज, ड्रेनेज, नदी प्रदूषण की समग्र एवं समन्वित प्रणाली को ध्वस्त होने से रोका जाए। संघर्ष समित के नेताओं ने बताया कि आला अफसरों ने जल निगम के मामले में सरकार को पूरी तरह से गुमराह कर रखा है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा इस वर्ष पांच बैठकों में जल निगम की विभिन्न विभागों पर बकाया सेन्टेज के रूप में 1474 करोड़ की देनदारी दस दिनो अन्दर अवमुक्त करने के निर्देश दिए गए लेकिन नौकरशाही इसका अनुपालन नही करा पाई। इसके उपरान्त समयबद्व रूप से पुनः धनावंटन के आदेश देते हुए फरवरी में प्रस्तुत होने वाले राज्य के बजट में कतिपय प्राविधान करने के निर्देश दिये गए उसका भी अनुपालन नही किया गया, इसके बाद जुलाई के अनुपूरक बजट में उक्त धनराशि का प्राविधान के निर्देश को भी नौकरशाही भूल गई। इससे नाराज मुख्यमंत्री ने जिम्मेदारों को दण्डित करने की जगह जल निगम का दो भागों में बॅटवारा कर दिया।

संघर्ष समिति के नेताओं ने बताया कि सरकार की अति महत्वकांक्षी योजना जल जीवन मिशन हर घर नल से जल योजना के तहत एक लाख बीस हजार करोड़ की योजना मे अगर मुख्यमंत्री की मंशानुसार जल निगम काम करता तो इससे मिलने वाला सेन्टेज चार्ज लगभग 15 हजार करोड़ रूपये होता और इस धनराशि से निगम की देनदारी चुकाने के बाद भी अगले दस वर्षो के वेतन,पेंशन का भुगतान तथा रिक्त पदों पर भर्ती आसानी से की जा सकती थी। यही नही जल निगम द्वारा उक्त कार्य कराये जाने से लगभग 15 हजार करोड़ रूपये का फायदा सरकार को भी होता।

उन्होने कहा कि नौकरशाही की आदूरदर्शिता का परिणाम है कि जिस योजना में जल निगम प्रदेश का नाम देश के पहले या दूसरे स्थान पर ला सकता था उस योजना मे आज प्रदेश 32 वे स्थान पर है और प्रगति 11.34 प्रतिशत है। उन्होंने नौकरशाही आदूरदर्शिता का हवाला देते हुए कहा कि जल निगम के 27 लाख इण्डिया मार्का हैण्डपम्प और छह हजार ग्रामीण पाइप पेयजल योजना है जिन्हें तकनीकि संसाधन और अभियंता विहिन पंचायती राज विभगा को रख-रखाव और देखरेख के लिए सौप दिया गया।

समिति द्वारा कहा गया कि जल निगम कार्मिकों ने 7 अगस्त को प्रस्ताव पारित कर माननीय मुख्यमंत्री से की गई मांग को पुनः दोहराया है कि जल निगम को बटवारे का दंष देने के बजाए अपनी इच्छा अनुसार किसी एक ही प्रषासनिक विभाग से सम्पूर्ण रूप से सम्बद्ध किया जाए जिससे पेयजल, सीवरेज, ड्रेनेज की समग्र एवं समन्वित प्राणाली ध्वस्त होने से बच सके।