नई दिल्ली: कई दशकों तक जिस तकनीक से भारत को दूर रखे जाने की कोशिशें होती रहीं, आज देश के वैज्ञानिकों ने उसी बेहद जटिल तकनीक में महारत हासिल कर ली है, और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देश के सबसे ताकतवर क्रायोजेनिक इंजन का 800 सेकंड तक सफल परीक्षण कर लिया।

इस क्रायोजेनिक इंजन के जरिए इसरो अपने अगली पीढ़ी के रॉकेट जियो-सिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (जीएसएलवी – मार्क III) का प्रक्षेपण कर सकेगा, जो आठ टन वज़न तक के उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है। सो, आज के सफल पूर्णावधि परिक्षण (full duration test) के बाद इसरो को भरोसा है कि वह अब वर्ष 2016 में निर्धारित की गई जीएसएलवी – मार्क III की पहली पूर्ण उड़ान की तैयारियों में जुट सकता है।

दरअसल, अमेरिका के दबाव में बहुत सालों तक भारत को क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक नहीं दी गई, और भारतीय वैज्ञानिकों को इस जटिल तकनीक में महारत हासिल करने में 20 साल का समय लग गया, जिसमें तरल नाइट्रोजन तथा तरल ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है।

पिछले साल 18 दिसंबर को भारत ने जीएसएलवी – मार्क III के मॉक-अप का बिना क्रायोजेनिक इंजन के सफल परीक्षण किया था, जिसमें क्रू-मॉड्यूल का परीक्षण भी शामिल था। भारत फिलहाल अपने जीएसएलवी – मार्क II रॉकेटों में क्रायोजेनिक इंजन के छोटे स्वरूप का इस्तेमाल करता है।

माना जा रहा है कि जब भारत अपनी धरती से अपने एस्ट्रोनॉटों को अपने ही रॉकेटों के जरिये अंतरिक्ष की ओर रवाना करेगा, तब जीएसएलवी ही वह रॉकेट होगा, जिसके जरिये भारत अपना दशकों पुराना सपना पूरा कर पाएगा।