नई दिल्ली : इंटरनेट पर डाटा संप्रेषण की सुविधा को किसी प्रकार के पक्षपात से मुक्त रखने के संबंध में सुझाव देने के लिए गठित एक सरकारी समिति ने कहा है कि स्काइप, वाट्सऐप और वाइबर जैसे एप की मदद से इंटरनेट पर स्थानीय काल को दूरसंचार सेवा कंपनियों की सामान्य फोन-काल सेवाओं के समान मान कर उनका उसी तरह नियमन किया जाना चाहिए।

इस समिति ने फेसबुक की इंटरनेट.ऑर्ग जैसी परियोजनाओं पर रोक लगाने की सिफारिश की है जो कुछ वेबसाइटों से संपर्क के लिए ग्राहकों से मोबाइल डेटा शुल्क नहीं लेंती। उसका सुझाव है कि उसी तरह की एयरटेल जीरो जैसी योजनाओं को ट्राई की पूर्व अनुमति के बाद ही लागू करने की छूट होनी चाहिए।

दूरसंचार विभाग के तकनीकी सलाहकार ए.के. भार्गव की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा है कि ‘ओवर-दी-टॉप (ओटीटी) वायस ऑन इंटरनेट प्रॉटॉकोल पर अंतरराष्ट्रीय कॉल सेवाओं को लेकर उदार दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। लेकिन घरेलू काल (स्थानीय और राष्ट्रीय) के मामले में दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और अेटीटी संचार सुविधाओं को फिलहाल नियामकीय दृष्टि से समान रूप से देखा जा सकता है।’ 

इंटरनेट को निरपेक्ष रखने की अवधारणा का अर्थ है कि इंटरनेट पर सभी प्रकार के ध्वनि और आंकड़ों के प्रसार के साथ बराबर का व्यवहार होना चाहिए और सेवा प्रदाता या इंटरनेट सामग्री प्रदाता को दिए जाने वाले भुगतान के आधार पर किसी कंपनी या इकाई को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए।

देश में ‘एयरटेल जीरो’ सेवा प्लेटफार्म शुरू किए जाने के बाद नेट निरपेक्षता पर बहस छिड़ गई। इस प्लेटफार्म के जरिए एयरटेल ने अपने नेटवर्क के कुछ वेबसाइटों को सम्पर्क शुल्क मुक्त रखने की पेशकश की है लेकिन कंपनियों (बेबसाइटो) को इस प्लेटफार्म से जुड़ने के लिए एयरटेल को शुल्क देना होगा।

इस समिति ने फेसबुक के इंटरनेट.ऑर्ग पर भी विचार किया और कहा कि अप्रैल 2015 तक इसका उपयोग करने वाले लोग केवल कुछ वेबसाइटों से ही शुल्क मुक्त संपर्क स्थापित कर सकते थे। फेसबुक यह तय करता था कि किन साइटों तक शुल्क मुक्त संपर्क हो सकता है। कुछ लोगों ने इसे नेट की निरपेक्षता के खिलाफ माना।

समिति ने कहा है कि दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और कंटेंट (सामग्री) प्रदाताओं के बीच ऐसे सहयोग को सक्रियता से हतोत्साहित किया जाना चाहिए जिसमें संपर्क तय करने का काम कोई एक इकाई करती हो। पर साथ ही उसने शून्य रेटिंग वाले मंचों को टोल-फ्री नंबर जैसा माने जाने की दूरसंचार सेवा कंपनियों की बात स्वीकार कर ली। 

समिति ने नेट निरपेक्षता के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि बताते हुए कहा है कि ओटीपी सेवा प्रदाताओं पर सुरक्षा संबंधी उपाय लागू होने चाहिए। उसने इससे संबंधित शर्तें अंतर-मंत्रालयी विचार विमर्श से तय करने को कहा है। इसने यह भी कहा है कि कुछ खास ओटीटी संचार सेवाएं जो केवल मेसेजिंग सेवा कारोबार में हैं, उनमें नियामकीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। समिति ने अपनी सिफारिशों के मसौदे पर 15 तारीख तक सुझाव मांगे हैं।

ट्राई के डाटा के अनुसार सेवा प्रदाताओं की काल और मैसेज की दरों और ओटीटी से इन सेवाओं की दरों में क्रमश 12.5 गुना और 16 गुना का अंतर है। ओटीटी सेवा प्रदाताओं की सेवा दरें सस्ती पड़ती हैं। उदाहरण के लिए एक मिनट की काल के लिए सामान्य नेटवर्क ग्राहक से करीब 50 पैसे वसूलता है जबकि इंटनेट के जरिए यही काल 4 पैसे में पड़ती है।

समिति का कहना है कि दूरसंचार सेवा कंपनियों पर वित्तीय दबाव है। उसने उनके लिए समानता के अवसर पर जोर देते हुए कहा है कि ओटीटी आपरेटर दूरसंचार सेवा कंपनियों की आय में सेंध लगा रहे हैं। दूरसंचार सेवा कंपनियों का कहना है कि उन्होंने 7.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश कर रखा है और पांच साल में उन्हें और पांच लाख करोड़ रुपए का निवेश करना होगा। ओटीटी का कहना है कि उनके आने से ही दूरसंचार कंपनियों के इंटरनेट कारोबार में तेजी आयी है।