लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश सरकार पर बेरोजगारों के साथ छलावा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य में लाखों नौकरियां है, किन्तु सरकार की लापरवाही से बेरोजगार सड़क पर है। प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा राज्य में ज्यादातर विभागों में समूह ‘घ’ तक के 50 प्रतिशत पद खाली पड़े है। लेखपाल भर्ती परीक्षा को लेकर सरकार की नियति पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि जब प्रारंम्भिक स्तर पर इतना भ्रम है तो परिणाम के स्तर पर क्या होगा।

सोमवार को पार्टी मुख्यालय पर चर्चा के दौरान प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि सरकार की पक्षपात पूर्ण नीतियों के कारण राज्य में बेरोजगारों की नौकरियों पर ग्रहण लग गया है। चाहे पुलिस भर्ती प्रक्रिया हो अथवा वर्तमान समय में विज्ञापित लेखपाल भर्ती प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। आखिर तीन वर्षो से लेखपालों की भर्ती को लेकर कवायद जारी थी। पहले तो कैसे अपने लोगों की फायदा पहुंचाया जाये इस नियति के तहत भर्ती प्रक्रिया में साक्षात्कार में 10 अंको की बजाय इसे 20 अंको का किया गया। अब भर्ती का जब पूरा कार्यक्रम जारी हो गया तो पेच फंसा कि भर्ती के लिये आरक्षण की पद्धति क्या अपनाई जाय। 15 से 20 जून के बीच विज्ञापन भी निकाल दिये गये। विज्ञापन निकालने के बाद आरक्षण की प्रक्रिया और मानक को लेकर सवाल खड़े हुए तो संशोधित विज्ञापन जारी कर दिये गये।

उन्होंने कहा कि दरोगा भर्ती का परिणाम कोर्ट के दखल के बाद जब जारी हुआ तो पूर्व में चयनित 810 अभ्यर्थी चयन से बाहर हो गए, संशोधित नतीजो में मेरिट ही बदल गयी। परीक्षा में अपनी ओएमआर आंसर सीट में व्हाइटनर या ब्लेड का इस्तेमाल करने वाले अभ्यर्थियों को हटा दिया गया। श्री पाठक ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब परीक्षाये हो रही थी, अभ्यर्थी परीक्षा दे रहे तो कक्ष निरीक्षक के रूप में तैनात लोग ने इन अभ्यार्थियों को व्हाइटनर या ब्लेट लगाने की अनुमति क्यो दी ? जबकि उनकी जानकारी में यह था कि इनका प्रयोग अनुचित है। इन कक्ष निरीक्षको की लापरवाही से जो छात्र सफल नहीं हो पाये उनका क्या दोष ?

श्री पाठक ने कहा कि दरोगा भर्ती प्रक्रिया में प्रश्न यह है कि क्या कक्ष निरीक्षकों की मौजूदगी में ही व्हाइटनर का प्रयोग हुआ, अथवा बाद में विशेष अभ्यर्थियों की मदद के लिए योजना पूर्णाक बदलाव किए गये, दोनों ही दशाओं में यह प्रकरण विस्तृत जांच का है। यदि कक्ष निरीक्षकों की जानकारी में हुआ तो उन पर कठोर दण्डात्मक कार्यवाही हो, यदि बाद में लाभ देने के लिए ये बदलाव किये गये तो जांच की आवश्यकता है कि किसके निर्देश पर ये काम हुआ, क्योंकि यह तो तथ्य है कि 810 अभ्यर्थी चयन से बाहर हुए है।