बर्लिन: बीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में उपमहाद्वीप के कई बुद्धिजीवी जर्मनी और विशेष रूप से बर्लिन में अकादमिक मिशन पर आए थे जिनमें भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन, डॉ राम मनोहर लोहिया, डॉ अब्दुल अलीम और जी एस अधिकारी शामिल हैं जिन्होंने हमबोल्ट विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की थी। इनके अलावा यहां आने वालों की एक लंबी सूची है, जिनमें वीरेंद्र चटोपाध्याय, लाला हर दयाल, पी टी आचार्य, मंसूर अहमद, बरकतुल्लाह, ए सी भट्टाचार्य, बी एन दास गुप्ता, हीराम्बा लाल गुप्ता, अब्दुल जब्बार खैर, अब्दुल सफर, महेंद्र प्रताप, ताराचंद, मुजीबुररहमान शीर्ष हैं। एम एन राय भी कुछ समय के लिए यहां आ चुके हैं। दुर्भाग्य से उनमें से ज़्यादातर लोगों को भुला दिया गया है। डॉ ज़ाकिर हुसैन के बारे में तो कुछ रिकॉर्ड मिल भी जाता है और बर्लिन में भारतीय दूतावास की लाइब्रेरी उनके नाम से जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन डॉ राम मनोहर लोहिया, डॉ अब्दुल हलीम  के रिकॉर्ड, जिनका संबंध भी बर्लिन की हमबोल्ट विश्वविद्यालय से सीधे है न जाने कहां पड़े हुए हैं। कुछ विद्वानों को छोड़कर कुछ लोगों के नाम तक अब किसी को पता नहीं हैं। यहां तक कि डॉक्टर अशरफ जो यहां काफी बाद में जी डी आर के जमाने में इतिहास के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आए थे और 1962 में कार्ल्स होर्स्ट नामक बर्लिन के क्षेत्र में अपने घर पर दिल के दौरे के कारण मर गए थे और यहाँ के कब्रिस्तान में दफन हुए थे, उन्हें भी अब लोग भूल चुके हैं उनकी कब्र भी अब इस कब्रिस्तान में नहीं मिलती।

इसलिए पिछले 2 जून को बर्लिन के कुछ विद्वानों की एक बैठक में जो डॉ अम्मार रिजवी की उपस्थिति में उर्दू अंजुमन बर्लिन के अध्यक्ष और हमबोल्ट विश्वविद्यालय के पूर्व सहायक प्रोफेसर आरिफ नकवी के घर पर हुई जहां इस स्थिति पर अफसोस जाहिर किया गया और तय किया गया कि कुछ जर्मन विद्वानों और संस्थाओं से संपर्क स्थापित किया जाय और उन सभी व्यक्तियों के बारे में अधिक से अधिक सामग्री इकट्ठा करने की कोशिश की जाए, खास तौर से बर्लिन में उनके अकादमिक कार्यों और यदि संभव हो तो उर्दू भाषा और साहित्य से संबंधित कार्यों के बारे में। यह भी तय किया गया कि मिर्जा ग़ालिब, अल्लामा इकबाल और उर्दू के अन्य शोअरा और पेशेवर लेखकों के अनुवाद भी प्राप्त करने की कोशिश की जाए।

इस उद्देश्य से एक समिति का गठन किया गया।  बैठक में तय किया गया कि इस समिति के चीफ आरिफ नकवी होंगे और सदस्यों में उर्दू अंजुमन बर्लिन के उपाध्यक्ष अनवर जहीर रहबर,  सचिव उदय फ़ाइलबाख, प्रोफेसर डॉ सुनील सेन गुप्ता और इशरत मुईन सीमा हैं ।  ये समिति अधिक से अधिक सामग्री जमा करने की कोशिश करेगी। प्रस्तावित मौलाना आजाद ग्रामीण यूनिवर्सिटी सीतापुर के संस्थापक और चेयरमैन अम्मार रिजवी ने इस फैसले की सराहना करते हुए अपनी ओर से पूरा समर्थन का यकीन दिलाया। उन्होंने भी इस बात पर खेद व्यक्त किया कि डॉ लोहिया, डॉ अब्दुल हलीम और कुछ अन्य विद्वानों को, जिनका हमबोलट विश्वविद्यालय से सीधा संबंध है भुला दिया गया है।

डॉ अम्मार रिजवी यहाँ उर्दू अंजुमन बर्लिन के अध्यक्ष आरिफ नकवी के निमंत्रण पर इस्मत चुग़ताई और राजेंद्र सिंह बेदी के जन्म शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के लिए आये थे। 

रिपोर्ट: आरिफ नकवी

अध्यक्ष उर्दू संगठन बर्लिन बर्लिन