चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि मुस्लिम धर्म अपनाने वाले हिंदू पिछड़े युवक,युवती को वही लाभ मिलने चाहिए जो पहले मिल रहे थे। कोर्ट ने एक हिंदू युवती आर आयशा के मामले में यह आदेश दिया, युवती का जन्म हिंदू पिछड़ी जाति में हुआ था और बाद में उसने इस्लाम धर्म अपना लिया था। हाईकोर्ट ने साथ ही तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमीशन को निर्देश दिया कि आयशा को पिछड़े मुस्लिम उम्मीदवार के रूप में माना जाए और उसके नाम पर टाइपिस्ट की पोस्ट के लिए विचार हो।

आयशा ने 2014 में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया था लेकिन उसे मना कर दिया गया था। उसने 2005 में इस्लाम अपना लिया था और मुस्लिम लब्बाई समाज से सर्टिफिकेट भी ले लिया था। इस समाज को 1994 के सरकार के आदेश के अनुसार इस्लाम में पिछड़ी जाति का दर्जा दिया गया है। उसने कोर्ट में अपील की थी और कहाकि, उसने दिसम्बर 2014 में जूनियर असिस्टेंट/टाइपिस्ट की परीक्षा दी थी और उसके 153 अंक आए थे। बाद में उसकी एप्लीकेशन इसलिए रद्द कर दी कि वह इस पोस्ट के लिए योग्य नहीं है क्योंकि वह जन्म से मुस्लिम नहीं है।

इस पर तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमीशन ने कोर्ट में कहाकि, आयशा केवल अन्य श्रेणी में अप्लाई कर सकती थी और इसमें उम्र सीमा 30 साल थी जबकि वह 32 की थी इसके चलते वह योग्य नहीं है। आयशा के वकील ने इसके जवाब में जस्टिस हरीपरांथमन के आदेश का हवाला देेते हुए तर्क दिया कि महिला को यदि पिछड़ा मुस्लिम माना जाता तो वह इसके योग्य होती। इस पर कोर्ट ने आयशा को पिछड़ा जाति मुसलमान मानने का निर्देश दिया और उसकी अर्जी स्वीकार करने को कहा।