सिंचाई मंत्री पटना में गंगा बाढ़ नियन्त्रण परिषद की 17वीं बैठक में सम्मिलित हुए

लखनऊ: पटना में आयोजित गंगा बाढ़ नियन्त्रण परिषद की 17वीं बैठक को सम्बोधित करते हुए प्रदेश के सिंचाई एवं उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि मैं केन्द्रीय मंत्री से कहा कि हमने इस निदेशालय के लिए कार्यालय परिसर आवंटित कर दिया है तथा इस कार्यालय के सफल संचालन के लिए जो भी सहायता आवश्यक होगी उसे प्रदेश सरकार प्रदान करेगी। 

श्री यादव ने केन्द्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती से बाणसागर बांध से उत्तर प्रदेश के हिस्से का पानी जनहित में तत्काल दिये जाने हेतु हस्तक्षेप की मांग की।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के लिए बाढ़ की विभीषिका एक गम्भीर समस्या है, जिससे प्रत्येक वर्ष उत्तर प्रदेश का लगभग 31 प्रतिशत क्षेत्रफल प्रभावित होता है तथा जान-माल और कृषि की वृहद हानि होती है। बाढ़ से प्रभावित होने वाली प्रमुख नदियां गंगा, यमुना एवं रामगंगा हैं,  जो उत्तराखण्ड राज्य से होकर आती हैं तथा घाघरा, शारदा, गण्डक, नारायणी एवं राप्ती हैं, जो नेपाल राष्ट्र से होकर आती हैं।

सिंचाई मंत्री ने कहा कि इन नदियांे के अतिरिक्त प्रदेश मे लगभग 42000 किमी0 लम्बाई के प्राकृतिक नालों, जिनकी सतत सफाई की कोई वृहद योेजना नहीं है जिससे जल प्लावन की समस्या उत्पन्न होती है।

श्री यादव ने कहा कि वर्तमान में बाढ़ प्रबन्धन परियोजनाओं की स्वीकृति की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल एवं लम्बी है। इस प्रक्रिया में पहले तकनीकी स्वीकृति, फिर इन्वेस्टमेंट क्लीयरेंस और इम्पावर्ड कमेेटी की स्वीकृति लेनी पड़ती है, जिसमंेे लगभग 02 वर्ष का समय लग जाता है। इसके बाद भी कई बार वित्तीय स्वीकृति जारी नहीं हो पाती है जिससे यह सारी कार्यवाही व्यर्थ चली जाती है। अतः प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता है। अभी जो बाढ़ सुरक्षा के उपाय किये जा रहे हैं, टुकड़ों में किये  जा रहे हैं, जबकि इस समस्या से निपटने के लिए गंगा के बेसिन में वृहद समेकित रणनीति की आवश्यकता है। एक प्रारम्भिक अनुमान के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाढ़ प्रभावित 44 जनपदों में बाढ़ से सुरक्षा हेत तटबन्धों को बनाने के लिए लगभग रु0 20000 करोड़ की आवश्यकता होगी, परन्तु प्रत्येक वर्ष 4-5 सौ करोड़ रूपये की व्यवस्था ही हो पा रही है। इस गति से प्रदेश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करनें में 40 वर्ष लग जायेंगे।

उन्होंने कहा कि पिछले 05 वर्षों में केन्द्र सरकार से उत्तर प्रदेश के लिए रू0 666 करोड़ की 16 परियोजनाएं स्वीकृत हुई हैं, जिसके सापेक्ष देय केन्द्राँश 490 करोड़ होता है परन्तु वास्तविकता मे मात्र रू0 254 करोड़ का ही केन्द्राँश प्राप्त हुआ है और इस वर्ष अभी कोई राशि प्राप्त नहीं हुई है। इस प्रकार प्रदेश की आवश्यकता के सापेक्ष स्वीकृत परियोजनाएं नगण्य हैं तथा इसके सापेक्ष भी पूर्ण केन्द्राँश नहीं मिल रहा है। वर्तमान वर्ष में बाढ़ हेतु केन्द्रीय बजट मात्र रू0 200 करोड़ ही रह गया है। इस अल्प राशि से हम सब बाढ़ की समस्या से कैसे निपटेंगे यह गहरी चिंता का विषय है। 

सिंचाई मंत्री जी ने कहा कि बाढ़ सुरक्षा के जो कार्य नेपाल राष्ट्र मेें किये जाते हैं, उनकी शत-प्रतिशत प्रतिपूर्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है, परन्तु वर्ष 2012-13 तथा 2013-14 में कराये गये कार्यों के सापेक्ष अभी तक व्यय की प्रतिपूर्ति नहीं की गयी है, जिसे तत्काल कराया जाना चाहिए।

श्री यादव  ने कहा कि नदियों के किनारे भूमि कटान की समस्या से हम सभी लोग भिज्ञ हैं। इस समस्या का एक प्रमुख कारण नदियों मे विभिन्न स्थानों पर बालू जमा होना है। उत्तर प्रदेश में तो अधिकांश नदियों में यह समस्या है और इसमे लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। इस बालू की व्यापक सफाई की आवश्यकता है, जिसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनायी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि बाढ़ प्रबन्धन हेतु हमारी वर्तमान सूचना एकत्रीकरण की पद्धति पुरानी हो चुकी है। नदियों में केन्द्रीय जल आयोग एवं प्रदेश सरकार द्वारा गेज मापन मैनुअल पद्धति से होता है, जिससे प्रायः त्रुटिपूर्ण सूचना मिलती है। अतः यह आवश्यक है कि आधुनिक पद्धति का प्रयोग किया जाये।