स्वामी सुखबोधानंदाने महाभारत के द्वारा मैनेजमेंट के बारे में दी जानकारी  

लखनऊ। सदाचारी लोगों के साथ रहने से ही उन्नति होती है। महाभारत में शकुनि का मन अशुद्ध और अस्त-व्यस्त था। वह बदला लेना चाहता था। इसलिए ही उसने कौरवों को अपना मोहरा बनाया। वहीं, श्रीकृष्ण ने पाण्डुओं को सदाचार का ज्ञान दिया। यह विचार गुरुवार को स्वामी सुखबोधानंदा ने व्यक्त किए। 

इन्दिरा नगर के होटल बेबियान इन में प्रसन्ना ट्रस्ट की ओर से ‘महाभारत द्वारा प्रबंधन’ विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत गुरुवार को हुई। इस मौके पर स्वामी सुखबोधानंदा ने कहा कि श्रीकृष्ण रणनीतिकार और ज्ञानी थे। उन्होंने पाण्डवों को सकारात्मक ज्ञान देकर आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि कारपोरेट में शकुनि जैसे लोगों से सभी को सचेत रहने की जरुरत है। इसलिए संगति पर ध्यान देना बहुत जरुरी है। मैनेजमेंट गुरू स्वामी सुखबोधानंदा ने कहा कि महाभारत समाज के हर वर्ग को प्रेरित करती है। कार्यशाला में प्रत्येक व्यक्ति को खुद को पहचानने और अपने जीवन बेहतर बनाने के बारे में बताया गया। 

स्वामी सुखबोधानंदा ने कहा कि हमारा चैतन्य अंधकारमय हो गया है। अपने शरीर से अंधकार को निकालना होगा। अपना नजरिया बदलना चाहिए। होशियार व्यक्ति दूसरों को बदलता है। पर, समझदार व्यक्ति खुद को बदलता है। इसलिए होशियार नहीं समझदार बने। 

स्वामी सुखबोधानंदा ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने लक्ष्य का निर्धारण जरुर करना चाहिए। उसके लिए लक्ष्य के प्रति केंद्रित रहना जरुरी है। जैसे महाभारत में अर्जुन ने मछली की आंख को लक्ष्य बनाया था। इसलिए ही उन्होंने अपने लक्ष्य को भेदा। वह अपने लक्ष्य से इधर-उधर भटके नहीं। 

स्वामी जी ने बताया कि लोग समाधान तलाशते हैं। समझदार नहीं बनना चाहते हैं। लोगों की मानसिकता स्थिर हो जाती है। वह दूसरों की बातों को समझना नहीं चाहता है। मंजिलों की ओर बढ़ते रहे तो हमेशा नया तजुर्बा मिलेगा। जीवन का मर्म है कि यथार्थ रूप से अनुभव करो और आगे बढ़ो।