इस्लामाबाद: पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारत और उसकी खुफिया एजेंसी रॉ पर उसके आंतरिक मामलों में दख़लंदाजी करने और चरमपंथ को हवा देने का फिर आरोप लगाया है। ये ख़बर पाकिस्तान के सभी बड़े उर्दू अखबारों में इस हफ़्ते छाई रही और कई अख़बारों ने इसे अपने संपादकीय का विषय भी बनाया। 

नवाए वक़्त लिखता है कि रॉ के ज़रिए पाकिस्तान की संप्रभुता पर वार करने की भारत की साज़िशें कभी ढकी छुपी नहीं रही हैं। अख़बार के अनुसार बलूचिस्तान और कराची में होने वाली घटनाओं में भारतीय हथियारों का इस्तेमाल और देश के दुश्मन तत्वों को रॉ की तरफ़ से ट्रेनिंग देने के सबूत पिछली सरकार के पास भी थे।  अख़बार के मुताबिक ये तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दिए भी गए थे, लेकिन भारत उल्टा पाकिस्तान पर ही दहशतगर्दी का मलबा डालता रहता है। 

दैनिक दुनिया का दावा है कि 1971 की जंग में पाकिस्तान की नाकामी की वजह यही थी कि वह दुनिया को नहीं बता पाया कि रॉ के एजेंटों ने न सिर्फ़ मुक्ति वाहिनी बना कर देशभक्त बंगालियों पर ज़ुल्म ढाए, उल्टा उन्हें ज़ालिम के तौर भी पेश कर दिया। अख़बार लिखता है कि पाकिस्तान को अतीत को ग़लतियों से सबक लेना होगा क्योंकि भारत की मंशा में रत्ती भर बदलाव नहीं आया है। 

इस मुद्दे पर दैनिक एक्सप्रेस की टिप्पणी है कि यह बात कई बार सामने आ चुकी है कि भारतीय एजेंसियां अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान में गड़बड़ फैला रही हैं और उन्होंने वहां प्रशिक्षण शिविर कायम कर रखे हैं। अख़बारपाकिस्तान सरकार को नसीहत देता है कि भारत की दखलअंदाज़ी का मुद्दा वह संयुक्त राष्ट्र में उठाए क्योंकि यह देश की सुरक्षा और अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। 

दैनिक जंग की टिप्पणी है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ शांन्ति चाहते हैं और इसीलिए वह कट्टरपंथी सोच रखने वाले नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में गए, लेकिन उसके बाद जो हुआ उससे पता चलता है कि भारत के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। 

अख़बार का मत है कि क्षेत्र में शांति कायम करनी है तो भारत को पाकिस्तान में दखलंदाजी बंद करके तनाव और मोर्चाबंदी के मौजूदा माहौल को खत्म करना होगा।