दोषी पुलिस अधिकारियों का मनोबल बढ़ाने और जनता का मनोबल गिराने के लिए दिया गया फैसला: रिहाई मंच 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सपा सरकार इंसाफ का गला घोटने के लिए न्यायपालिका में भी हस्तक्षेप कर रही है जिसका परिणाम है तारिक कासमी की उम्र कैद। इसलिए हम इसे न्यायिक निर्णय नहीं बल्कि राजनीतिक निणर्य मानते हैं। सरकार के इस लोकतंत्र विरोधी रवैए का दूसरा उदाहरण रिहाई मंच द्वारा 26 अप्रैल को गंगा प्रसाद मेमोरियल हाॅल, अमीनाबाद में हाशिमपुरा जनसंहार पर होने वाले सरकार विरोधी सम्मेलन की अनुमति नहीं दिया जाना और रिहाई मंच के अध्यक्ष को मजिस्ट्रेट द्वारा धमकी देना कि हम किसी भी कीमत पर सम्मेलन नहीं होने देंगे, है। यह बातें आज यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में रिहाई मंच के नेताओं ने कही।  

तारिक कासमी के अधिवक्ता व रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि तारिक कासमी जिसकी गिरफ्तारी को ही निमेष कमीशन ने संदिग्ध करार देते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी ऐसे में यह एक हास्यास्पद फैसला है कि जब उसकी गिरफ्तारी बाराबंकी से हुई ही नहीं थी तो उसे आरडीएक्स की बरामदगी के आरोप में कैसे सजा दी जा सकती है। इस फैसले ने साफ किया है कि जिस तरीके से सरकार बाराबंकी से झूठी बरामदगी दिखाने वाले एसटीएफ के अधिकारियों समेत पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, पूर्व एडीजी बृजलाल समेते 42 पुलिस व आईबी अधिकारियों को बचाने के लिए निमेष कमीशन पर ऐक्शन नहीं लिया अब उसी काम को अदालत के जरिए करवाया जा रहा है। क्योंकि यह एक अहम सवाल था कि अगर तारिक-खालिद की गिरफ्तारी झूठी थी तो उनसे पास से विस्फोटक एसटीएफ ने कैसे बरामद किया, जिसका उसके पास कोई उत्तर नहीं है। क्योंकि उसने पहले उन्हें आजमगढ़ और जौनपुर से अगवा कर आतंक के हौव्वे को बढ़ाने के लिए पुलिस ने खुद ही अपने पास पहले से मौजूद विस्फोटकों की झूठी बरामदगी तारिक-खालिद से करवाई। उन्होंने कहा कि इस फैसले ने साफ कर दिया कि सपा सरकार का आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों को छोड़ने का वादा झूठा था, उसका मकसद उन्हें झूठे मामलों में सजा दिलाना था। रिहाई मंच तारिक कासमी के इंसाफ के सवाल पर प्रदेश व्यापी जनअभियान संचालित करते हुए आंदोलन की तरफ बढ़ेगा। 

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि फैसला सुनाने वाले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसपी अरविंद ने फैसला सुनाने के बाद भरी अदालत मेें जिस तरह से टिप्पणी की कि ‘नौकरी करनी है, मजबूरी में दे रहा हूं फैसला’ उससे जज की निरीहता और सरकार और सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों के दबाव को देखा जा सकता है। रिहाई मंच न्यायपालिका को सरकार और खुफिया-सुरक्षा एजेंसियों के हस्तक्षेप से मुक्त कराने के लिए भी आंदोलन करेगा। 

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि प्रदेश सरकार ने एक संवैधानिक निकाय जस्टिस निमेष आयोग का गठन करके इस गिरफ्तारी पर उठे सवालों की जांच करवाई थी, जिसने अपनी रपट में गिरफ्तारी को संदिग्ध बताया है, बावजूद इसके जज द्वारा फैसला देते वक्त निमेष कमीशन की रिपोर्ट दरकिनार किया जाना न्यायिक प्रक्रिया के अन्तर्विरोधों को परिलक्षित करता है। मौलाना खालिद की हत्या के बाद चले रिहाई मंच के आंदोलन के दबाव में 16 सितंबर 2013 को सपा सरकार ने जिस निमेष कमीशन की रपट को कैबिनेट की मंजूरी के बाद सदन में रखा उस रपट का सरकार अब क्या करेगी, अखिलेश बताएं। क्योंकि इस जांच आयोग के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई का लाखों रुपया खर्च किया गया है। उन्होंने कहा कि मुरादाबाद पर डीके सक्सेना, कानपुर पर माथुर कमीशन, हाशिमपुरा, मलियाना से लेकर तारिक-खालिद की फर्जी गिरफ्तारी पर गठित निमेष आयोग समेत जितने भी जांच आयोग बने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जब जांच आयोगों पर सरकार को अमल ही नहीं करना है तो उसे जांच आयोगों के गठन के इस नाटक को खत्म कर देना चाहिए। 

रिहाई मंच नेता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि हाशिमपुरा के इंसाफ के सवाल पर 26 अपै्रल को गंगा प्रसाद मेमोरियल हाॅल, अमीनाबाद में आयोजित सरकार विरोधी सम्मेलन की अनुमति निरस्त कर सरकार इंसाफ के सवाल को दबाना चाहती है। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद भी रिहाई मंच की हिंसा पीडि़तों की जनसुनवाई को प्रदेश सरकार ने ठीक इसी तरह ऐन वक्त पर कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी थी, जिसके बाद भी हमने कार्यक्रम किया और विधानसभा मार्च भी किया। आज जब हाशिमपुरा, मलियाना, मुरादाबाद, कानपुर समेत पूरे सूबे से सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त इंसाफ के लिए आ रहे हैं तो हम इस सरकार विरोधी सम्मेलन को करेंगे। इंसाफ के सवाल पर रिहाई मंच सरकार की अनुमति का मोहताज नहीं है। कयोंकि हमारा मानना है कि इंसाफ का सवाल देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने का मामला है और हमारा संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है।