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दलितोें की सामाजिक व आर्थिक स्थिति आज भी दयनीय: सुभाषिणीं अली

लखनऊ । दलित शोषण मुक्ति मंच की ओर से एक धरने का आयोजन आज अम्बेडकर प्रतिमा जीपीओ पर किया गया जिसमें प्रदेश भर से नेता व कार्यकर्ता उपस्थित रहे। 

धरने को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने कहा कि प्रदेश में कुल आबादी में करीब 24 प्रतिशत दलित हैं। आजादी के 67 साल बाद भी दलितोें की सामाजिक, आर्थिक स्थिति दयनीय बनी हुई है। दलित समाज का बहुमत विकास की दृष्टि से हाशिये पर बना हुआ है। दलित हर प्रकार से सामाजिक दमन, जातिगत भेदभाव, छुआछूत और आर्थिक शोषण का शिकार रहे हैं। इनमें से अधिकतर परिवार अमानवीय और कमतर हालात में जीवन जीने को मजबूर हैं। ये हर पहलू से मानव विकास के न्यूनतम पैमानों से भी पीछे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2014 में घटी दलित उत्पीड़न की थानों में दर्ज घटनाओं को देखें तो बहुत गम्भीर हालात दिखते हैं। दलितों की हत्या से जुड़े 237 मामले, आगजनी से जुड़े 27 मामले, बलात्कार से जुड़े 413 मामले, गम्भीर चोटों से जुड़े 327 मामले, अन्य अपराधों से जुड़े 6573 मामले यानी कुल अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण कानून के अंतर्गत 7577 अभियोग दर्ज किये गये। बहुत सारी घटनाओं को थानों में दर्ज ही नही किया जाता।

धरने को सम्बोधित करते हुए दलित शोषण मुक्ति मंच के राष्ट्रीय समन्वय समिति के सदस्य बी.एल. भारती ने कहा कि दलितों पर हमले और अत्याचार की घटनाओं में प्रदेश में हो रही बढ़ोत्तरी बेहद चिंताजनक है। उन्होने कहा कि बीजेपी के नेतृत्ववाली केन्द्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 के बजट आवंटन में सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, अनुसूचित जाति-जनजाति विकास, महिला एवं बाल विकास आदि से जुड़ी योजनाओं में भारी वित्तीय कटौती की है, इन कटौतियों से समाज के वंचित तबकों खासकर दलितों, महिलाओं तथा गरीबों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। हमारी आपसे मांग है कि केन्द्र सरकार के इस जनविरोधी कदम पर राज्य सरकार विरोध दर्ज कराये तथा सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं में बजट में संशोधन कर आवंटन बढ़ाने की मांग करे। 

धरने के माध्यम से मांग की गयी कि 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में 40 निर्दोष अल्पसंख्यकों की जघन्य हत्या में लिप्त दोषियों के बरी होने के खिलाफ ऊपरी अदालत मे केस दायर कर समुचित पैरवी करंे और दोषियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत अदालत में पेश करें जिससे कि दोषियों को सजा मिले और पीडि़तों को न्याय मिल सके।

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