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भाषा और लिपि दोनों आज खतरे में हैंः प्रो0 मो0 जमां आजुर्दा

लखनऊ: भाषा  सभ्यता की जड़ और लिपि भाषा की जान है। आज यह दोनों खतरे में हैं ऐसे में सभ्यता को बचा पाना इस नए युग में बहुत मुश्किल है। यह विचार आज यहां लखनऊ विश्वविद्यालय विभाग उर्दू में पूर्व डीन कश्मीर विश्वविद्यालय प्रोफेसर मोहम्मद ज़मां आजुर्दा ने व्यक्त किये। वह श्मौजूदा दौर में सभ्यता के सामने पेश आने वाली चुनौनियांश् विषय पर मसूद हसन रिजवी हॉल में विस्तृत व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि भाषाओं की लिपि मिटती जा रही है। ग्लोबलाइजेशन के दौर में एक भाषा हावी होती जा रही है। कंप्यूटर से लेकर मोबाइल तक में इसी भाषा के सॉफ्टवेयर काम कर रहे हैं। उनका इशारा अंग्रेजी भाषा की ओर था उन्होंने कहा कि उर्दूए हिंदीए तमिल और अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ जानने वाले अपनी भाषाओं में एसएमएस जरूर लिखते हैं लेकिन लिपि उनकी अपनी भाषा की नहीं होती । उन्होंने सभ्यता की हार और आज के दौर में पैदा समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि दरअसल हमने विचार विमर्श करना छोड़ दिया है जिसकी वजह से हमें वह मिलता है जो दूसरे चाहते हैं ऐसे में  आवश्यक है कि विचार विमर्श का दायरा बढ़ाया वरना इससे सभ्यता की मौत होगी। उन्होंने कहा कि भाषा और संस्कृति की समस्या किसी एक समुदाय से जुड़ा नहीं बल्कि सभी सुदायों से है। उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि राजस्थान में तीन सौ से अधिक पगड़ियां हुआ करती थीं जिनसे कबीलों की पहचान हुआ करती थी मगर आज यह संग्रहालय की शोभा हैं। प्रोफेसर ज़मां आजुर्दा रहन सहन की शैली  नुक्ताचीनी करते हुए कहा कि आज जिस तरह के कपड़ों का उपयोग हो रहा है पहले हम सोच नहीं सकते थे इसी तरह बर्गर खाने के लिए जितना मुंह खोलना पड़ता है हमारी संस्कृति के खिलाफ है। 

इससे पहले तिलावत कुरान से शुरू होने वालेविस्तृत व्याख्यान में विभागाघ्यक्ष डॉ अब्बास रज़ा नैयर ने स्वागत करते हुए मुख्य अतिथि प्रोफेसर ज़मान आजुर्दा का परिचय कराया।  पूर्व  विभागाध्यक्ष उर्दू प्रोफेसर महमूद हसन ने अध्यक्षता करते विस्तृत व्याख्यान के विषय के महत्व और उपयोगिता पर प्राकश डालते हुए कहा कि वही कौमें जीवित रहती हैं जो अपनी संस्कृति का संरक्षण और प्रबंधन करती हैं। उर्दू एक भाषा ही नहीं बल्कि संस्कृति भी है। इस संस्कृति को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। विभाग में इस तरह के विस्तृत व्याख्यानों का आयोजन होते रहना चाहिए। इस प्रकार छात्रों की अपने प्राचीन सभ्यता से प्रतिबद्धता रहेगी। विशिष्टअतिथि डॉक्टर फखरे आलम आजमी ने भी विचार व्यक्त किये जबकि नाजिम हुसैन खान द्वारा आभार प्रकट करने के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। संचालन मोहम्मद हनीफ खान ने किया। इस अवसर पर डॉ उबैदुर्रहमान, डॉ अली सलमान, डॉ मुन्तजिर मेहदी, राजीव प्रकाश, मीसम रिजवी, यासिर जमाल अंसारी, अजय कुमार, करार हुसैन, छात्रों में मोहम्मद अबरार, नाजिया, आबिदा रईस, शगुफ़्ता, सना तोफीक और मोहम्मद शोएब सहित एम ए प्रथम और द्वितीय के सभी विद्यार्थी मौजूद थे।

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