उर्दू रायटर्स फोरम के तत्वाधान उर्दू  मरसिये में मिर्जा दबीर का इम्तियाज विषय पर सेमीनार 

लखनऊ। मर्सिया निगारी में लखनऊ का एक अहम मुकाम है  मर्सियानिगारी  का  लखनऊ काबा है, यह अल्फाज कश्मीर से यहां तशरीफ लाये साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रो.जमा आजुर्दा ने आज यहां उर्दू मीडिया सेंटर में हुए समारोह में बोलते हुए कही। उर्दू राइटर्स  फोरम के तत्वाधान में उर्दू  मरसिये में मिर्जा दबीर का इम्तियाज  विषय पर समारोह का आयोजन किया गया था।

प्रो.जमा आजुर्दा ने कहा कि मैं दबीर पर पीएचडी बगैर लखनऊ के नहीं कर सकता था। उनहोंने कहा कि मेरी मादरी जबान उर्दू नहीं बल्कि कश्मीरी है लेकिन बचपन में दबीर का मर्सिया  पढ़ा था इसके  बाद ही मिर्जा दबीर से मेरा रिश्ता हो गया। कहा कि अल्लामा शिब्ली नोमानी से कही चूक हो गयी,मैं उनकी नियत पर शक नहीं करता लेकिन उन्होंने दबीर व मीर अनीस की तुलना ठीक नहीं की है। प्रो.जमा ने कहा कि पहले मरसिये को उर्दू शायरी में शामिल ही नहीं किया जाता था यह काम मिर्जा सलामत अली दबीर ने किया। दबीर ने न सिर्फ मर्सिये  कहे बल्कि चौदह मासूमीन के मसनविया भी लिखी और यह मसनिवयां इन मासूमात की विलादत पर पढ़ी जाती। उन्होंने ही बताया कि हम सिर्फ कर्बला के शहीदों को ही नहीं याद करते बल्कि उनकी विलादत का जश्न भी मनाते है। मिर्जा दबीर से बहुत पहले कश्मीरी जबान में भी मर्सिया निगारी होती थी। उन्होंने कहा कि मिर्जा दबीर पर पीएचडी के लिए मुझे लखनऊ के साथ रजा लाइबरेरी रामपुर, इलाहाबाद, खुदा बख्श लाइबरेरी पटना, मुर्शिदाबाद में  वाजिद अली शाह की लाइबरेरी के अलावा सालार जंग लाइबरेरी हैदराबाद  में भी जाना पड़ा और वहां से काफी चीजे हासिल की। मुर्शिदाबाद की लाइबरेरी बंद पड़ी थी और बड़ी मुश्किल में मुझे वहां इंट्री मिली,  कहा कि हम लोग अपनी मजहबी  कामों पर काफी पैसा खर्च करते है नजरे देते है लेकिन अदब के लिए पैसा कम खर्च करते है अगर इस पर भी थोड़ा पैसा खर्च किया जाए तो आने वाली नस्ले इससे  फायदा उठायेगी।

  समारोह की अध्यक्षता कर रहे मशहूर आलोचक प्रो.शारिब रूदौलवी ने कहा कि मिर्जा दबीर का उर्दू शायरी में बहुत बड़ा मुकाम है। बहुत अरसे से लखनऊ में दबीर पर कोई समारोह नहीं हुआ था। दबीर पर नवाब काजिम अली खान ने बहुत काम किया था। दबीर पर प्रो.जमा आजुर्दा ने बहुत अच्छा काम किया है और वह भी लखनऊ के शहरी न होने के बावजूद वह इतनी दूर से यहां आये और जगह-जगह दबीर पर जखीरा इक्टठा किया। प्रो.शारिब ने कहा कि मिर्जा दबीर के पास अल्फाजों का जो खजाना था वह बहुत मुश्किल से कही और मिलता है। दबीर का ही यह कमाल था कि सुबह का मंजर उन्होंने 12 बंदों में पेश किया। आसमान पर सूरज का कब्जा हो चुका है और चांद तारों का दौर खत्म हो गया है। दबीर का कलाम उन्ही लोगों को समझ में आता है जो इल्म से वाकिफ है, इसीलिए मिर्जा दबीर को समझने वाले कम है। उन्होंने कहा कि मीर अनीस और मिर्जा दबीर की तुलना गलत है। प्रो. जमा आजुर्दा ने मिर्जा सलामत अली दबीर हयात और कारनामें किताब लिख कर बहुत बड़ा काम किया है।

उर्दू रायटर्स फोरम के संयोजक सैयद वकार रिजवी ने कहा कि प्रो.जमा आजुर्दा साहब का लखनऊ से गुजर हो रहा  था,  इसीलिए उनको फोरम ने यहां बुला लिया। संयोजक ने उन लोगों को भी लताड़ा जो यह समझते कि मीर अनीस की तरह मिर्जा दबीर पर भी कब्जा किया जा रहा है जबकि यह सिर्फ एक संयोगहै  कि मीर अनीस के बाद मिर्जा सलामत अली दबीर पर पीएचडी करने वाले व उन पर किताब लिखनेे वाले प्रो.जमा आजुर्दा हमारे बुलावे पर यहां तशरीफ ले आये और उनकी ही बदौलत हमने मिर्जा दबीर को भी थोड़ा जान लिया। सैयद वकार रिजवी ने कहा कि मीर अनीस के मजार के नवनिर्माण  के लिए जो कमेटी बनी है वह मीर अनीस के खानवादे के लोगों की रजामंदी से ही बनी है। जिसके मुखिया प्रो.डा.अनीस अशफाक है इस कमेटी केे लोग ही मुख्यमंत्री से मिलेंगे औ मीर अनीस के  मजार के नवनिर्माण पर उनसे बात करेेंगे। उन्होंने कहा कि मीर अनीस, मीर तकी मीर, मिर्जा दबीर की निजी जागीर नहीं है बल्कि यह सारी कौम व अदब के चाहने वालों की जागीर है। उन्होने कहा कि उर्दू रायटर्स फोरम आगे भी उर्दू के लिए कार्यक्रम करती रहेगी। समारोह का संचालन कर रहे डा.अब्बास रजा नैयर ने निजाम करते हुए मिर्जा दबीर के कुछ बेहतरीन मर्सियों  को पढ़ते हुए कहा कि मैं दिया हूं मुंझे बुझायेगी ऐ हवा सांस फूल जायेगी। उन्होंने कहा कि लखनऊ मिर्जाओं का शहर है।  मंच पर बुजुर्ग अदीब प्रो.निकहत भी थी।