नई दिल्ली। मोदी सरकार ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से अपने दो महत्वपूर्ण बिल कोयला और खनन पास करा लिए। एनडीए के पास राज्यसभा में इन्हें पास कराने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं था लेकिन सपा और बसपा के चलते उनका काम बन गया। इस परिदृश्य से साफ हो गया कि ये दोनों पार्टियों भले ही विपक्ष में हो लेकिन सरकार की नैया पार लगाने में उनके साथ है। इससे पहले ये दोनों पार्टियां यूपीए सरकार के समय उनके साथ थी।
सपा और बसपा ने कई महत्वपूर्ण मौकों और अहम बिलों को पास कराने में यूपीए सरकार का साथ दिया था। 2008 में अमरीका के साथ परमाणु संधि के दौरान सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने एन मौके पर पलटी खाते हुए कांग्रेस का समर्थन किया था। उस समय कांग्रेस नाजुक स्थिति में थी। शुक्रवार को एक बार फिर से सामने आया कि यूपी में अपनी मजबूत स्थिति रखने वाली दोनों पार्टियां केन्द्र से अलग नहीं होना चाहती। हालांकि इन बिलों पर भाजपा को बिजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस और अनाद्रमुक का भी समर्थन मिला।
लेकिन सपा और बसपा का भाजपानीत सरकार का समर्थन देना कई लोगों को हैरान करता है। उत्तर प्रदेश में इन दोनों दलों के सामने भाजपा ही मजबूत प्रतिद्वंदी है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यूपी की 80 में 73 सीटों पर जीत हासिल की थी और बसपा का सफाया कर दिया था। जबकि सपा को केवल पांच सीटें मिली वो भी यादव परिवार की। कुछ जानकार मानते हैं कि यूपी में अखिलेश सरकार को केन्द्र से मदद दिलाने के लिए सपा ने ऎसा किया। साथ ही खनन और कोयला यूपी में कोई मुद्दा नहीं है। कारण जो कोई भी हो इन दोनों के इस व्यवहार ने लोगों को आश्चर्य में डाल दिया है।
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