नई दिल्ली: अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई पर विवाद बढ़ता जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक पीडीपी नेताओं ने कहा है कि मसरत की रिहाई पहले से ही तय थी और इसे लेकर फरवरी में ही फैसला हो गया था।

सूत्रों के अनुसार इन नेताओं के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के शपथ ग्रहण करने से पहले राज्यपाल शासन के दौरान ही मसरत की रिहाई का फैसला हो गया था। इस बीच कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी ट्वीट कर कहा है कि मसरत की रिहाई के लिए मुफ्ती सरकार को दोष क्यों दिया जा रहा है जबकि यह फैसला मोदी सरकार ने गवर्नर शासन के दौरान ही ले लिया था।

मालूम हो कि मसरत आलम की रिहाई के बारे में राज्य सरकार के गृह विभाग द्वारा दी गई जानकारी को असंतोषजनक बताते हुए कल केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि केंद्र ने वहां की सरकार से इस बारे में और जानकारी मांगी है। उन्होंने कहा कि यदि जरूरत हुई तो राज्य सरकार को कड़ा परामर्श जारी किया जाएगा। सरकार इस मामले में कोई संकोच नहीं करेगी। जम्मू कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार के गठन का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि खंडित जनादेश के कारण ऐसा करना जरूरी था।

गृह मंत्री ने जनसुरक्षा कानून के तहत मसरत की हिरासत के मुद्दे को सितंबर 2014 में परामर्श बोर्ड के पास नहीं भेजे जाने का सारा जिम्मा तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस सरकार पर डालते हुए कहा कि वह तीन माह तक इसे दबाए रही। गृह मंत्री ने राज्य सरकार से मिली जानकारी के आधार पर कल बताया था कि मसरत ने 2010 में घाटी में हुए उग्र प्रदर्शनों में मुख्य भूमिका निभाई थी। 1995 से लेकर अब तक उस पर 27 मामले दर्ज किए गए जिनमें देशद्रोह , हत्या का प्रयास और साजिश रचने के मामले हैं। उन्होंने बताया कि उसे अदालत से 27 मामलों में जमानत मिल चुकी है।