(मुश्ताक़ अली अंसारी)

स्थिरता के साथ आर्थिक विकास और रोजगार अवसरों में वृद्धि के लिए नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक के लिए आरबीआई ने राहत की घोषणा की. नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक को 50000 करोड़ की मदद का घोषणा किया गया।लेकिन 130करोड़ आबादी वाले देश की अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए अपर्याप्त है। यह ऊंट के मुंह में जीरा समान है।फिर भी सवाल बना रहेगा कि इतना का आवंटन से मार्केट में रुपया कैसे आएगा किन व्यवसायिक गतिविधियां संचालित करने वालों को सरकार रुपया देने की तैयारी कर रही है। बड़े उद्योगपतियों को कर्ज और राहत देने से अर्थव्यवस्था पटरी पर आने से रही, क्योंकि जब तक डिमांड नहीं क्रिएट होगी तब तक उत्पादन की जरूरत नहीं,और जब उत्पादन की जरूरत नहीं तो रोजगार नहीं मांग और उत्पादन का सर्किल तभी चलेगा। जब व्यक्ति उपभोक्ता हो वो तभी होगा जब उसकी पैकेट में धन होगा इसलिए सरकार को सभी व्यक्तियों के लिए न्यूनतम इनकम जैसी कोई योजना लानी ही पड़ेगी इसको लाये बिना देश को मंदी से बचाना मुश्किल है। क्योंकि किसान पेंशन या जनधन के अत्यल्प धनराशि से बाजार में मांग पैदा होना मुश्किल है।

जब तक आम आदमी की जेब में धन नहीं होगा तब तक यह सारे प्रयास नाकाफी साबित हो जाएंगे।क्योंकि अधिकांश रोजगार लघु एवं मध्यम उद्योग में है।70 फ़ीसदी मजदूर लघु एवं मध्यम उद्योग में काम करता है लेकिन अभी तक जो सरकारी पालिसी दिखती है।वह बड़े उद्योगपतियों को सपोर्ट करने की दिख रही है।सरकार के अंदर कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिए जाने के लिए कोई नजरिया दिखाई नहीं पड़ रही है भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला देश दैनिक उपयोग की वस्तुएं लघु मध्यम उद्योगों द्वारा निर्मित की जाती है और सर्वाधिक शारीरिक श्रम भी लघु व मध्यम उद्योगों में खपत होती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दे उसके पास एनआरएलएम का राष्ट्रीय स्तर का बड़ा ढांचा मौजूद है। और लाकडाउन के दौरान जितने भी कारखाने बंद हुए हैं उन्हें राहत देने का काम करना चाहिए और आम उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रशंसित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मनरेगा और राष्ट्रीय आजीविका मिशन का बजट तीन गुना करना चाहिए।तभी ग्रामीण क्षेत्रों में क्रय शक्ति बढ़ेगी और तभी उद्दोगों का चक्का भी घूमेगा और सिडबी का धनआवंटन बढ़ाया जाए और वह सूक्ष्म उद्योग में लगे तो हमारा देश भारत संभावित मंदी की चपेट से बच जाएगा हालांकि आरबीआई कोरोना वायरस को लेकर बहुत ही सतर्क है ।लेकिन वर्ष 2020 को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी मंदी का साल बताया है लेकिन अगर पूंजीवाद की नीतियों को छोड़ कर सरकार समाजवादी नीतियों को अपना ले तो देश वैश्विक मंदी से बच सकता है। और ये सूक्ष्म और लघु उद्योग को बढ़ावा देने के साथ लोककल्याण योजनाओं को मजबूत करने से ही हो सकता है।

बैंकों के लिए राहत के लिए रिजर्व बैंक ने 27 मार्च को रेपो रेट .75%कम कर दिया था अब .25%रिवर्स रेपो कम करके बैलेंस ये किया कि50000 करोड पूंजी बैंकों को दे रहे हैं,साथ ही बैंकों के आरबीआई में जमा धन पर व्याज़ घटा दिया है।अब बैंक भी उपभोक्ताओं के जमा धन पर व्याज़ को कम कर सकते हैं।ये बचत के बजाय व्यय को प्रोत्साहित करना हो सकता है।लेकिन समस्या तभी सुलझेगी जब सरकार मनरेगा,एनआरएलएम समेत सूक्ष्म और लघु उद्योगों में निवेश करेगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)