नई दिल्ली: जैसा कि हम जानते हैं कोरोना वायरस सीधे फेफड़े पर हमला करता है जिससे मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ऐसे में उसे वेंटिलेटर पर डाला जाता है जिसमें मशीन की मदद से ऑक्सीजन की सप्लाई होती है। पूरी दुनिया में अभी वेंटिलेटर की डिमांड काफी बढ़ गई है। भारत में कोरोना के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं तो यहां भी वेटिंलेटर की डिमांड काफी बढ़ गई है। लेकिन WTO के मुताबिक भारत वेंटिलेटर के आयात पर सबसे ज्यादा ड्यूटी लगाता है।

वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन ( WTO) ने कहा है कि भारत मेडिकल इक्विपमेंट, मेडिसिन, ऑक्सीजन मास्क पर सबसे ज्यादा ड्यूटी लगाता है। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत रेस्पिरेटर/वेंटिलेयर पर 10 पर्सेंट ड्यूटी लगाता है जबकि चीन केवल 4 पर्सेंट ड्यूटी लगाता है। यह रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब भारत वेंटिलेटर की भारी कमी से जूझ रहा है। सरकार ने 10 हजार वेंटिलेटर खरीद के लिए टेंडर भी जारी किया है।

WTO की रिपोर्ट के मुताबिक, मोस्ट फेवर्ड नेशन्स (MFN) द्वारा कोविड-19 से जुड़े मेडिकल प्रॉडक्ट्स पर औसत इंपोर्ट ड्यूटी WTO के सदस्य देशों के लिए 4.8 फीसदी है। नॉन-एग्री प्रॉडक्ट्स के लिए औसत ड्यूटी 7.6 फीसदी है जिससे यह कम है, जबकि भारत नॉन एग्री प्रॉडक्ट्स पर 11.60 पर्सेंट की ड्यूटी लगाता है।

अन्य मेडिकल प्रॉडक्ट्स की बात करें तो मोस्ड फेवर्ड नेशन्स (MFN) द्वारा मेडिसिन पर सबसे कम औसतन 2.1 फीसदी और पर्सनल प्रोटेक्टिव प्रॉडक्ट्स पर अधिकतम औसतन 11.50 फीसदी इंपोर्ट टैक्स लगाया जाता है जबकि भारत मेडिसिन पर 10 पर्सेंट और पर्सनल प्रोटेक्टिव प्रॉडक्ट्स पर 12 पर्सेंट इंपोर्ट टैक्स वसूलता है।

भारत में वेंटिलेटर की कुल संख्या सरकारी और निजी अस्पताल मिलाकर 40 हजार के करीब है, जबकि कोरोना के कारण इसकी डिमांड काफी बढ़ गई है। कमी के कारण भारत ने चीन से वेंटिलेटर खरीदने का फैसला किया है लेकिन चीन की तरफ से जो बयान आए हैं उससे भारत के लिए चिंता बढ़ सकती है। दरअसल, चीन ने इसपर कहा है कि वह आवश्यक वेंटिलेटर भारत को देने के लिए तैयार है लेकिन फिलहाल उत्पादन में कठिनाई आ रही है क्योंकि उन्हें वेंटिलेटर बनाने के लिए कलपुर्जों का आयात करना पड़ेगा।