नई दिल्ली: देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है। देश भर के सभी डॉक्टर और पैरामेडिक्स लोगों के इलाज़ में लगे हुए हैं। लेकिन कोरोना वायरस से बचाव में जुटी टीम के लिए एन-95 मास्क, पर्सनल प्रोटेक्टिव किट और सैनिटाइजर की किल्लत हो रही है। मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए किट और मास्क की और ज्यादा जरूरत है। इसी बीच कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी मेडिकल उपकरण बनाने वालों ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन लोगों का कहना है कि सरकार ने इस महामारी से लड़ने के लिए जरूरी मेडिकल उपकरण बनाने की अनुमति देर से दी जिसके चलते देश ने पांच हफ्ते गंवा दिए।

ऐसे समय में जब स्वास्थ्यकर्मी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई किट) की कमी के बारे में बार-बार चिंता जता रहे हैं, ऐसे में सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या मोदी सरकार ने स्वास्थ्य संकट के इस पहलू को सही तरीके से संभाला है? क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रिवेंटिव वियर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (PWMAI) के अध्यक्ष संजीव ने बताया कि पीपीई की कमी की मुख्य वजह इसको लेकर सरकार की लेट प्रतिक्रिया है।

संजीव और पीपीई के अन्य निर्माताओं का कहना है कि उन्होंने फरवरी में स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क किया था और सरकार से पीपीई किट को स्टॉक करने का आग्रह किया था। लेकिन तब स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था कि इस मामले में उन्हें केंद्र से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। संजीव ने कहा कि हमें 21 मार्च तक सरकार की तरफ से कोई मेल नहीं मिला। अगर सरकार ने 21 फरवरी तक मेल का जवाब या विनिर्देश प्रदान किये होते तो अबतक पीपीई किट की हम पर्याप्त व्यवस्था कर पाते। संजीव ने आगे कहा “लगभग 5 से 8 मार्च के बीच राज्य सरकारों, सेना के अस्पतालों, रेलवे अस्पतालों से टेंडर आना शुरू हुए।

बता दें कोरोना वायरस के इलाज में लगे स्टाफ के लिए एसएन मेडिकल कॉलेज में रोजाना 50-60 पर्सनल प्रोटेक्टिव किट और 70-80 एन-95 मास्क की जरूरत है।