नई दिल्ली: देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने राज्यसभा की सदस्यता को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि यह सरकार की तरफ से मिला कोई उपहार नहीं, बल्कि राष्ट्रपति की अनुशंसा पर देश की सेवा करने का एक मौका है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें सरकार से उपहार ही लेना होता तो क्या वह राज्यसभा की सदस्यता से मान जाते? उन्होंने कहा जब सम्मान मिल रहा हो तो स्वाभाविक है कि आप उसे लेने से इनकार नहीं कर सकते।

एक सवाल के जवाब में पूर्व CJI बोले, मैंने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया, मेरे फैसले वाली बेंच में पांच, तीन अन्य जज हुआ करते थे। फैसलों पर उनकी सहमति हुआ करती थी। मैंने आर्टिकल 80 पर संविधान सभा में हुई बहसों को पढ़ा और मैंने पाया कि यह एक सेवा है जिसके जरिए आप अपनी विशेषज्ञता से संसदीय चर्चाओं को समृद्धि और गंभीरता प्रदान करते हैं। क्या यह रिटायरमेंट के बाद का उपहार जैसा है? अगर मुझे उपहार की पेशकश होती तै क्या मैं राज्यसभा की सदस्यता से मान जाता?

बेशर्म कहे जाने के सवाल पर गोगोई बोले, अगर जस्टिस गोगोई को लॉ कमिशन का असाइनमेंट या एनसीएलएटी जो अभी खाली है या मानवाधिकार आयोग जो दिसंबर में खाली होने वाला है, तब न्यायपालिका का स्तर नहीं गिरता, मेरे फैसलों पर सवालिया निशान नहीं लगते? मैं पूछता हूं कि क्या अगर कार्यकाल पूरा करने के बाद भी भारत के मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्र सेवा का मौका मिलता है तो क्या देश में इस तरह हंगामा मचना चाहिए, क्या संविधान की कद्र इस तरह से करनी चाहिए? मैं जानना चाहता हूं कि रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा की सदस्यता एंप्लॉयमेंट है? यह सही नहीं है। आप 365 दिन में 60 दिन संसद सत्र में शामिल होते हैं। इसके लिए आपको उतनी या उससे भी कम रकम मिलती है जो सीजेआई के पद से रिटायरमेंट के बाद मिलती है। आवास भी उस स्तर का नहीं होता है जो जिस स्तर का आवास सीजीआई रहते हुए मिलता है। फिर भी आप कहेंगे कि यह सरकार के मनमुताबिक दिए गए फैसलों का उपहार है? ऐसा विचार देश के किसी दुश्मन का ही हो सकता है।