नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत पर इस समय तीन तरह का खतरा मंडरा रहा है। सामाजिक असमानता, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य समस्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की बड़ी चिंता है कि ये जोखिम न केवल भारत की आत्मा को तोड़ सकते हैं, बल्कि दुनिया में आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी वैश्विक स्थिति को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मनमोहन सिंह ने समाचारपत्र 'द हिन्दू' में प्रकाशित लेख में देश के मौजूदा हालात का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि बड़े ही भारी मन से उन्होंने ये लिखा है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लिखा, 'पिछले कुछ हफ्तों में दिल्ली में भारी हिंसा हुई। हमने बिना किसी कारण के करीब 50 भारतीय साथियों को खो दिया, सैकड़ों लोग घायल भी हुए हैं। सांप्रदायिक तनाव की लपटें कुछ राजनीतिक वर्ग के साथ-साथ हमारे समाज के अनियंत्रित वर्ग की ओर से फैलाई गई। इसमें विश्वविद्यालय परिसर, सार्वजनिक स्थान और निजी घर निशाना बनाए गए। कानून-व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं ने नागरिकों की रक्षा का अपना धर्म छोड़ दिया है। उन्होंने आगे लिखा, 'इस तरह के मामलों पर लगाम की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से सामाजिक तनाव की आग देशभर में तेजी से फैल रही है और हमारे देश की आत्मा को टुकड़े-टुकड़े करने का खतरा पेश कर रही है। इसे वही लोग बुझा सकते हैं, जिन्होंने इसे भड़काया है।'

पूर्व प्रधानमंत्री ने लिखा, 'देश में वर्तमान हिंसा को सही ठहराने के लिए इतिहास में हुई इस तरह की घटनाओं का जिक्र करना निरर्थक है। सांप्रदायिक हिंसा की हर घटना महात्मा गांधी के भारत पर धब्बा है। कुछ ही सालों में, उदार लोकतांत्रिक तरीकों से वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास का मॉडल बनने के बाद अब भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ये बहुसंख्यकों को सुनने वाला देश बन गया है।' उन्होंने लिखा, 'ऐसे समय में जब हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, ऐसे सामाजिक अशांति का प्रभाव केवल आर्थिक मंदी को बढ़ाएगा। अब यह अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था का संकट वर्तमान में निजी क्षेत्र की ओर से किए गए नए निवेश की कमी के चलते है। निवेशक, उद्योगपति और कारोबारी नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए तैयार नहीं हैं।'

मनमोहन सिंह ने लिखा, 'सामाजिक व्यवधान और सांप्रदायिक तनाव केवल उनके डर और जोखिम को कम करते हैं। सामाजिक समरसता, आर्थिक विकास का आधार, अब संकट में है। निवेश में कमी का सीधा असर नौकरियों और आय पर होगा। आर्थिक विकास का आधार होता है सामाजिक सद्भाव, और इस समय वही खतरे में है। टैक्स दरों को कितना भी बदल दिया जाए, कॉरपोरेट वर्ग को कितनी भी सहूलियतें दी जाएं, भारतीय और विदेशी कंपनियां तब तक निवेश नहीं करेंगी, जब तक हिंसा का खतरा बना रहेगा।'