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‘जस्‍ट‍िस अरुण म‍िश्रा द्वारा मोदी की तारीफ वाले बयान को बॉम्बे बार एसोसिएशन ने अनुचित बताया

नई दिल्ली: बॉम्बे बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरुण मिश्रा के उस बयान की आलोचना की है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुमुखी प्रतिभा का धनी बताया था। कानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक, एसोसिएशन ने इस मामले पर एक प्रस्ताव भी पारित किया। इसमें कहा गया- “एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज की तरफ से कार्यपालिका के प्रमुख (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) के लिए ऐसे खुशामद करने वाले बयानों की निंदा करता है। बार एसोसिएशन यह मानता है कि यह अनुचित और गैरजरूरी था। यह प्रस्ताव गुरुवार को बार की मीटिंग में बहुमत से पास हुआ।”

प्रस्ताव में आगे गया, “भारत सरकार कोर्ट में सबसे बड़ी वादियों में से एक है। यह जरूरी है कि न्यायपालिका अपने नजरिए में कार्यपालिका के सदस्यों के साथ निष्पक्ष हों। फिर चाहे वो कोर्टरूम के अंदर हो या बाहर। इस तरह के बयान कानूनी कार्यों से जुड़े लोगों और जनता के स्वतंत्र न्यायपालिका पर आत्मविश्वास को डिगाते हैं।”

बार एसोसिएशन के मुताबिक, “यह खास तौर पर खेदपूर्ण है कि इस तरह के बयान एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में दिए गए। वो भी वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों, कानून मंत्री, अंतरराष्ट्रीय कानून समुदाय और सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा और पूर्व जजों के सामने।”

मोदी की तारीफ में जस्टिस अरुण मिश्रा ने क्या कहा था?: जस्टिस अरुण मिश्रा ने 22 फरवरी को कहा था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नेतृत्व के लिए तारीफ हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदर्शी व्यक्ति हैं। उनकी अगुआई में भारत दुनिया में एक जिम्मेदार और दोस्ताना रुख रखने वाले देश के तौर पर उभरा है। न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करना समय की मांग है, क्योंकि यह लोकतंत्र की रीढ़ है। विधायिका इसका दिल है और कार्यपालिका दिमाग है। इन सभी अंगों को स्वतंत्र रूप से काम करना होता है। लेकिन, इनके आपसी तालमेल से ही लोकतंत्र कामयाब होता है।

जस्टिस मिश्रा के बयान पर बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया भी जता चुका है निराशाः इससे पहले बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) ने भी जस्टिस अरूण मिश्रा द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में इस्तेमाल किये गये शब्दों पर निराशा जताई थी। एसोसिएशन ने कहा कि इस तरह का व्यवहार न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के बारे में लोगों के विश्वास को कमजोर करता है। एसोसिएशन ने कहा था कि जजों का यह बुनियादी कर्तव्य है कि वे सरकार की कार्यपालिका शाखा से गरिमामय दूरी बनाकर रखें।

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