लखनऊ: संयुक्त संघर्ष समिति, उ.प्र. राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड के तत्वावधान में जारी गांधी वादी आन्दोलन के बावजूद सरकार द्वारा द्विपक्षीय वार्ता के लिए आमंत्रित न किये जाने तथा किसी तरह का सकारात्मक आश्वासन न दिये जाने से नाराज समिति ने आज उच्चधिकार समिति की आपात बैठक में 29 फरवरी से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार का निर्णय लिया। ज्ञात हो कि विगत 11 फरवरी से आन्दोलनरत निगम के कार्मिकों एंव अधिकारियों द्वारा विभिन्न चरणों में सांकेतिक प्रदर्शन एवं अल्पकालीन कार्य बहिष्कार किया जा रहा था। आन्दोलनकारियों का कहना है कि जब केन्द्र सरकार ईपीसी मोड में तीन कार्यदायी संस्थाओं को नामित कर चुकी है तो उत्तर प्रदेश में केवल एक संस्था को कार्यदायी संस्था नामित कर प्रदेश सरकार दोहरा मापदण्ड क्यो अपना रही है।

संयोजक राज बहादुर सिंह ने कहा कि सरकार के इस निर्णय से निगम के व्यवसायिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है। लगातार 45 वर्षो से भवन निर्माण के क्षेत्र में देश विदेश में ख्याति प्राप्त लगातार लाभ अर्जित करने वाले इस निगम को अचानक बिना उच्च स्तरीय बैठक एवं नीति निर्धारण के ही बंदी की ओर ढकेलने वाला निर्णय लिया गया है। सरकार को निश्चित तौर पर एक वर्ष के ैभीतर अपनी इस गल्ती का आभास होगा लेकिन तब तक काफी विकास कार्य पिछड़ चुके होगे और सरकार को तब तक काफी वित्तीय क्षति हो चुकी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही कुछ समय बाद सरकार इस निर्णय पर पुर्नविचार करेगी तब तक निगम की माली हालत खस्ता हो जाएगी।

निगम मुख्यालय पर आयोजित सभा को संघर्ष समिति के सह संयोजक इं.संदीप कुमार सिंह, इं. नरेन्द्र कुमार, इं. मिर्जा फिरोज शाह, उमाकान्त, जागेश्वर प्रसाद,, मुकेश चन्द्र, रविराज सिंह,इं. एस.डी. द्विवेदी, ए.के. गोस्वामी, इसहाक अली, सुरेन्द्र कुमार और आशीष ने सम्बोधित किया। सभा के दौरान समिति के एस.पी. पाण्डेय, नान बच्चा तिवारी, शिवनन्दन प्रसाद वर्मा, राजेश कुमार चैहान, संतोष कुमार वर्मा, एस.पी. खण्डूरी, भजनलाल यादव, पी. एन. सिंह सरकार ने चंद लोगों की सलाह पर भूलवश यह निर्णय लिया जिसके कारण प्रदेश के विकास कार्य तो प्रभावित होंगे ही साथ ही विकास कार्यों की लागत में बढ़ोत्तरी होगी। आमसभा में कई यक्ष प्रश्न किये गये है जैसेः उ.प्र. राजकीय निर्माण निगम लि. द्वारा आवास और शहरी विकास निगम लिमिटेड से वर्ष 2016-2017 में लिये गये ऋण रू. 2380.00 करोड़ जिसकी त्रैमासिक किस्त लगभग रू. 106.00 करोड़ है के सम्बंध में निगमहित में क्या निर्णय लिया जाना चाहिये ? 50.0 करोड़ से ऊपर के कार्यों के सम्बंध में निर्गत् शासनादेश के कारण निगम को आवंटित रू. 10456.00 करोड़ के कम हो गये कार्यों पर पी.डब्लू.डी के देय दरों के अनुसार कंसलटेंसी चार्जेज का क्लेम शासन से अब तक क्यों नहीं किया गया ? कार्यों के आवंटन के सम्बंध में शासनादेश निर्गमन के पश्चात् निगम प्रबंधन द्वारा शासन स्तर पर की जा रही फिजूल खर्ची को रोकने के लिये कौन-कौन से कदम उठाये गये हैं ? ई.पी.सी.मोड पर रू. 50.0 करोड़ से ऊपर के कार्यों को प्राप्त करने हेतु निर्माण निगम द्वारा क्या रणनीति बनाई गई हैं? निर्माण निगम द्वारा प्रदेश के बाहर टेण्डर के माध्यम से किये जा रहे निर्माण कार्यों में लाभ-हानि की वर्तमान स्थिति क्या है ?