लखनऊ: वादा फाउंडेशन तथा ह्यूमन राइट्स मानिटरिंग फोरम HRMF के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस और रास्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर "भारत में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा – स्थिति व चुनौती" विषय पर सेमिनार का आयोजन कर कार्यक्रम स्थल एपी सेन रोड स्थित आफिस से चारबाग तक रैली निकाली गई। रैली में शामिल बच्चों ने अपने हाथों में कई तख्तियां पकड़ी थीं. जिस पर “शिक्षा हैं सबका अधिकार बंद करो इसका व्यापार,” “गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदरी,” “जेंडर आधारित भेदभाव बंद हो”, “कम उम्र में शादी बच्चों के जीवन की बर्बादी”, “बाल मजदूरी बंद करों” जैसे कई नारे लिखे हुए थे।

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस और राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संस्था के संस्थापक एवं निदेशक अमित ने कहा की शिक्षा एक बुनियादी मानव अधिकार है! शिक्षा एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के साथ साथ समाज को प्रभावित करने वाले सामाजिक और आर्थिक बदलाव का हथियार हैं।

उन्होंने कहा की लैंगिक समानता और मानव अधिकारों सहित सतत विकास को प्राप्त करने और गरीबी के चक्र को तोड़ने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महत्वपूर्ण है। देश के हर बच्चे को भोजन, शिक्षा,स्वास्थ्य के साथ ही खुशनुमा माहौल में रहने और पूर्ण सुरक्षा पाने का अधिकार है। सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदरी हैं, लेकिन उसके बावजूद लाखों लोग सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों के कारण शैक्षिक अवसरों से वंचित हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार देश में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान होने के बावजूद अभी भी लगभग 32 मिलियन बच्चे हैं, जिनकी आयु 6 से 13 वर्ष के बीच है, जिन्होंने कभी किसी शैक्षणिक संस्थान में भाग नहीं लिया है।

संचालन करते पैनल अधिवक्ता वी के त्रिपाठी ने कहा कि आज का दिन अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप मनाया जाता है! गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देश के हर बच्चे को मिलना चाहिए हैं! उन्होंने कहा की आज शिक्षा के अभाव के कारण देश में करोड़ों की संख्या में बाल मजदूर फसे हुए हैं. सरकार योजना तो बना देती है लेकिन उसे जमीन तक पहुचाने के लिए ठोस उपाय नहीं करती है। हमारे देश के शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, बच्चों में कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी मानको का स्तर बेहद खराब हैं जिसमें रोजाना सैकड़ों बच्चों की मौत हो रही और तमाम कानून होने के बाद भी बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों में कुपोषण खत्म होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। वह दिन कब आएगा जब कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। उन्होंने बच्चों के अधिकारों की संरक्षण के लिए सरकार से ठोस कदम उठाने की अपील की हैं।

उक्त अवसर पर मजदूरों के अधिकार पर काम कर रहें सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश भारती ने कहा की बच्चों के लिए शि‍क्षा विकास की पहली सीढ़ी है। शि‍क्षा पाना हर बच्चे का अधिकार है। बच्चों को बेहतर शिक्षा और घर-परिवार के साथ समाज में रहने और स्वस्थ विकास के लिए दिए गए अधिकारों का हनन ना हो उसके लिए सरकार को ठोस उपाय करनी चाहिए। आज समाज में लड़के-लड़की में जो भेदभाव की घटना सामने आ रही हैं उस पर रोक लगाने के लिए सख्त क़ानून बनाने की जरुरत हैं भेदभाव करना गलत हैं। संविधान में दिए हुए बाल अधिकार क़ानून का सही पालन हो ताकि बच्चों के जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य, संरक्षण, स्वतंत्रता, सहभागिता के अधिकार को सुनिश्चित कर बच्चों के बेहतरी के साथ-साथ स्वच्छ समाज का निर्माण हो।

बच्चों के अधिकार पर काम कर रही समाज सेविका काजल ने कहा कि बच्चियों की स्वास्थ्य एवं सुरक्षा में महत्वपूर्ण सुधार सुनिश्चित करने, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और क्षमता को बढाने के लिए शिक्षा सबसे शक्तिशाली बल है। लेकिन उसके बावजूद लड़कियों की शिक्षा के लिए उपलब्ध कानूनों, नीतियों और योजनाओं के शोध अध्ययनों से पता चलता है कि गरीबी, बाल विवाह, स्कूली शिक्षा विद्यालयों में स्थित स्थितियां और विद्यालयों में सुरक्षा की कमी जैसे प्रमुख कारण हैं की हाशिए के समुदायों की लड़कियां, स्कूल से बाहर हैं।

उन्होंने कहा की सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों में लड़कियों पर बहुत अधिक प्रतिबंध हैं, लड़कियों को विभिन्न संदर्भों में भेदभाव और हिंसा के कई रूपों का शिकार होना पड़ता है। उन्हें जल्दी शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि उन्हें एक बड़ा बोझ माना जाता है, और उनकी सुरक्षा के मुद्दे, विशेष रूप से किशोरावस्था के बाद एक बड़ा कारण है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया में बाल वधुओं की संख्या के मामले में पहले स्थान पर है, जहां लगभग 27 प्रतिशत लड़कियों की शादी उनके अठारहवें जन्मदिन से पहले हो जाती है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिए कमजोर शैक्षिक अवसर, बाल विवाह में लड़कियों को मजबूर करने की संभावना को बढ़ाते हैं।

हम सभी को वक्त-वक्त पर ऐसी सामुदायिक पहल करते रहने की जरुरत है तभी सरकार और समाज जागरूक होगा। ऐसे कार्यक्रम और जागरूकता रैली बच्चों के अधिकारों की पैरवी के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हैं।
इस अवसर पर पूजा, सौरभ कुमार, वेदप्रकाश, पूनम, वर्षा, शान्ति गुड्डी, सरला, आरती, सोनी सहित अन्य लोगों ने भी सेमिनार में अपने बहुमूल्य विचार रखा।