नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से 10 हजार करोड़ रुपए के अंतरिम लाभांश की मांग की है। बताया जा रहा है कि सरकार वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए तय राजस्व वसूली के लक्ष्य से पीछे रह गई है।

सूत्रों के अनुसार, माना जा रहा है कि सरकार इस गैप को भरने के लिए ही आरबीआई से अंतरिम लाभांश की मांग कर रही है। गौरतलब है कि यह लगातार तीसरा साल है, जब सरकार ने आरबीआई से अंतरिम लाभांश की मांग की है।

राजस्व वसूली के तय लक्ष्य से पीछे रहने की वजह टैक्स में कमी और विनिवेश से होने वाली प्राप्तियों में आयी कमी को माना जा रहा है। सरकार 1 फरवरी, 2020 को बजट पेश करने वाली है।

वहीं सरकार द्वारा अंतरिम लाभांश की मांग पर आरबीआई ने अभी तक अंतिम फैसला नहीं किया है। माना जा रहा है कि 15 फरवरी को नई दिल्ली में होने वाली आरबीआई के केन्द्रीय बोर्ड की बैठक में सरकार की मांग पर कोई फैसला हो सकता है।

आरबीआई ने पिछले साल अपनी बैलेंस शीट के छमाही ऑडिट की व्यवस्था की थी, ताकि सरकार को कितना अंतरिम लाभांश दिया जाए? इसे लेकर फैसला हो सके। आरबीआई द्वारा सरकार को अंतरिम लाभांश देने की व्यवस्था साल 2016-17 में शुरू की गई थी। तब भी आरबीआई ने सरकार को 10 हजार करोड़ रुपए का लाभांश दिया था।

इसके बाद बीते साल आरबीआई ने सरकार को 28 हजार करोड़ रुपए का लाभांश देने का फैसला किया था।

बता दें कि आरबीआई अपना लाभ मुख्य तौर पर करेंसी की ट्रेडिंग और सरकारी बॉन्ड्स की मदद से प्राप्त करता है। इस लाभ में से आरबीआई द्वारा अपने ऑपरेशनल और आकस्मिक जरूरत लायक लाभ को अपने पास रखकर बाकी फंड सरकार को ट्रांसफर कर दिया जाता है।

उल्लेखनीय है कि बीते दिनों आरबीआई द्वारा पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। इस समीति ने अपने सुझाव में कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 से आरबीआई का वित्त वर्ष सरकार की तरह अप्रैल से मार्च तक होना चाहिए, जो कि अभी जुलाई से जून तक है। इसके साथ ही समीति ने असाधारण परिस्थितियों में ही सरकार को अंतरिम लाभांश देने की बात कही थी।