लखनऊ: इंडियन नेशनल लीग और राष्ट्रीय भागीदारी आंदोलन के नेतृत्व में राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने संयुक्त रूप से गांधी प्रतिमा पर जिला अधिकारी के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति और भारत के प्रधान मंत्री को ज्ञापन भेजा। जिसमें मुख्य रूप से पीसी कुरेल, हाजी फहीम सिद्दीकी, मोहम्मद अफाक, कामरेड डीके यादव, मुस्लिम फोरम के प्रदेश अध्यक्ष डॉ आफताब अहमद, मुस्लिम मतदान पार्टी के अध्यक्ष अजीज-उल-हसन, शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के कन्वीनर मौलाना अली हुसैन कुम्मी ,भागीदारी आंदोलन के महासचिव अब्दुल -वहीद चिश्ती, अब्बास बाग प्रबंधक मोहम्मद हुसैन, रानी एजुकेशनल सोसाइटी की सचिव नसरीन जावेद,समाज सेवक शमीम वारसी सामाजिक कार्यकर्ता आबिद हुसैन, पत्रकार रिजवान चंचल, शमशेर गाजीपुरी, जमालुद्दीन , नरेंद्र यादव आदि मौजूद थे। ज्ञापन में सीएए की मुखालिफत करते हुए मुतालबा किया गया है की यह कला कानून मुल्क में हिन्दू मुस्लिम में नफरत फैलाने और खण्डित करने वाला है, नागरिकता का कानून भारत में पहले से ही है। फिर इसकी क्या जरूरत है? देश में लगभग 1 करोड 70 लाख लोग ऐसे हैं जो खाना बदोश की जिन्दगी जी रहे हैं। आज वे इस शहर तो कल दूसरे शहर में रहते हैं कहाँ से वह अपने कागजात लाएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 8 करोड़ 43 लाख आदिवासी हैं, 32 करोड़ अनपढ़ हैं,ये कौनसी मार्कशीट और सर्टिफिकेट और प्रमाण पत्र दे पाएंगे। गरीब, श्रमिक, कमजोर और पिछड़े , दलित के पास अपने परिवार के कागजात नहीं होंगे। वे अपनी नागरिकता कैसे साबित करेंगे? यदि नागरिकता साबित नहीं होती है, तो उन्हें डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाएगा। और वो गरीब अपना मुकदमा लड़ने में सक्षम नहीं होंगे। यह कानून सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं है, बल्कि असम में हिंदू जो शुरू में एनआरसी लागू करने की बात कर रहे थे वो एनआरसी लागू होने के बाद अपने ही देश में घुसपैठि हो गए। इसीलिए सीएए कानून अगर एनआरसी से जोड़ दिया गया तो यह बहुत ही खतरनाक होगा। एक स्वर में उपस्थित सभी नेताओं ने काले कानून का विरोध किया और सरकार से निरस्त करने की मांग किया।