नई दिल्ली: राष्ट्रपति पदक से सम्मानित डीएसपी देविन्दर सिंह कभी आतंकवादियों से सवाल-जवाब किया करते थे, लेकिन अब वह खुद आतंकवादियों के साथ पकडे गए हैं, शनिवार को दक्षिण कश्मीर में उन्हें एक कार में दो ‘वांछित आतंकियों’ के साथ गिरफ्तार किया गया। जब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो उस वक्त उनकी तैनाती श्रीनगर हवाई अड्डे पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की सुरक्षा और एंटी-हाईजैकिंग यूनिट के साथ थी। लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद से 2001 के संसद हमले और जम्मू-कश्मीर में अन्य बड़े मामलों में उसकी कथित भूमिका के बारे में सवाल उठने लगे हैं।

बात 2004 की है। उस समय संसद भवन पर हमले का आरोपी अफजल गुरु दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद था। अफजल ने अपने अपने वकील सुशील कुमार को एक पत्र लिखा था और कहा था था कि डीएसपी देविन्दर सिंह (उस समय जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में हुमहमा में तैनात थे) ने उन्हें ‘मोहम्मद को दिल्ली लाने, दिल्ली में किराए पर घर दिलाने और एक कार खरीदवाने के लिए कहा था। मोहम्मद की पहचान एक पाकिस्तानी के रुप में हुई थी, जो उनलोगों में से एक था जिन्होंने संसद भवन पर हमले की घटना को अंजाम दिया था।

अफजल ने एक अन्य पुलिस अधिकारी शांती सिंह का नाम लिया था जिसने देविन्दर सिंह के साथ हुमहमा एसटीएफ कैंप में कथित तौर पर उसे प्रताड़ित किया था। उसने यह भी लिखा था, “अल्ताफ हुसैन, जो कि बडगाम के एसएसपी आशाक हुसैन (बुखारी) के बहनोई हैं, ने पहले देविन्दर सिंह से रिहा करवाने में “बिचौलिए” भूमिका निभाई और बाद में उन्हें डीएसपी के पास ले गया।” अफजल को संसद भवन हमले में दोषी करार दिया गया और 9 फरवरी 2013 को फांसी दे दी गई।

संसद हमले के मामले में देविन्दर सिंह की कथित भूमिका की जांच नहीं की गई थी। इसके बारे में पूछे जाने पर रविवार को आईजीपी (कश्मीर) विजय कुमार ने कहा, “हमारे रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है और न ही मुझे इसके बारे में कुछ पता है … हम इस पर उनसे सवाल करेंगे।” जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “वे (देविन्दर सिंह) अपने कर्म की वजह से ही पकड़े गए हैं। इस बार मुझे नहीं लगता कि कोई भी उन्हें बचा सकता है। उनसे कई सवाल पूछे जाएंगे। वह इन दोनों वांछित आतंकवादियों को कहां ले जा रहा था? वे घाटी को छोड़ रहे थे, क्योंकि वे जम्मू के रास्ते पर थे। उनकी योजना क्या थी? लगभग हर ऑपरेशन जहां वह (दविंदर सिंह) या उनके सहयोगी शामिल थे, संदिग्ध हो गए हैं।” अधिकारी ने बताया, “सिंह आतंकवाद रोकने की ड्यूटी पर कश्मीर में तैनात थे। वे पुलवामा में भी डीएसपी के रुप में तैनात थे। एक बार जब उनसे पूछताठ होगी तो कई बातों का खुलासा हो सकता है।”

इस बीच जब अफजल गुरु मामले में शांति सिंह की कथित भूमिका का पता नहीं चल सका लेकिन उन्हें 2003 में जम्मू-कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच की जांच के बाद जेल में डाल दिया गया। इसमें उन्हें पुलिस हिरासत में “पाखरपुर के शोलीपोरा के एक नागरिक मोहम्मद अयूब डार को प्रताड़ित कर मारने” में शामिल पाया गया। पुलिस हिरासत में प्रताड़ित कर ‘उसके शरीर पर गोली मार’ उसे मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के रुप में दिखाया गया था।

राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद क्राइम ब्रांच ने इस मामले की जांच शुरू की थी। क्राइम ब्रांच ने हिरासत में हत्या मामले में शांति सिंह की भूमिका की जांच के लिए एक मामला (एफआईआर 77/2003) दर्ज किया था। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, “1 और 2 जून 1999 की रात इंस्पेक्टर वारिस शाह के साथ ईशपाल सिंह उर्फ शांती सिंह ने अब्दुल रहमान डार के पुत्र मोहम्मद अयूब डार को उसके घर से उठाया। पूछताछ के दौरान डार की मृत्यु हो गई थी। तब शांति सिंह ने अपने शरीर पर एक गोली दागी और फिर दलवान गांव में मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादी के रूप डार को दिखाने के लिए उसके पास कुछ हथियार और गोला-बारूद रखे थे।