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मज़दूर संगठनों के भारत बंद का मिलाजुला असर, कहीं रोकी गयीं ट्रेनें तो कहीं हुआ चक्का जाम

नई दिल्ली: देश के विभिन्न मज़दूर संगठनों ने आज भारत बंद का आह्वान किया जिसका असर देश के अलग-अलग हिस्सों में सुबह से ही दिखने लगा। कहीं ट्रेनें रोकी गयीं तो कहीं चक्का जाम किया गया| ये बंद श्रम सुधार और निजीकरण के खिलाफ बुलाया गया था। कई ट्रेड यूनियन सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ इस बंद में शामिल हुईं। पच्चीस करोड़ लोगों के बंद में शामिल होने का दावा किया जा रहा है। छह सेंट्रल ट्रेड यूनियन और छह बैंकिंग यूनियन ने बंद का समर्थन किया ।

पश्चिम बंगाल, केरल और असम में हड़ताल से सड़क और रेल यातायात भी काफी प्रभावित रहा। तिरुवनंतपुरम में केएसआरटीसी की नगर और लंबी दूरी के मार्गों की बस सेवाएं बंद रहीं। सड़कों पर वाहनों और ऑटो रिक्शा की आवाजाही भी कम थी। वहीं, पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में सड़क और रेल यातायात बाधित हुआ। हड़ताल समर्थकों ने राज्य के कुछ हिस्सों में रैलियां निकालीं और उत्तर 24 परगना जिले में सड़कों और रेलवे पटरियों को अवरुद्ध कर दिया।

असम में हड़ताल से आम जनजीवन प्रभावित रहा क्योंकि सड़कों में वाहनों की संख्या कम रही और बाजार भी बंद रहे। गुजरात में बैंकिंग सेवाएं आंशिक रूप से प्रभावित हुईं। ट्रेड यूनियनों का दावा है कि गुजरात में कई हिस्सों में कारखाने में उत्पादन प्रभावित हुआ। ट्रेड यूनियनों की हड़ताल का त्रिपुरा में मिला-जुला असर देखने को मिला।

बंद को लेफ्ट पार्टियों ने सफल बताते हुए देशवासियों को बधाई दी है|, सीपीआई एम् के उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि हड़ताल की पूर्व संध्या पर लागू किये गए प्रशासनिक प्रतिबंधों को धता बता कर तमाम सेक्टरों, उद्योगों, संस्थाओं के मजदूर, कर्मचारी, महिलाएं, छात्र, युवा और ग्रामीण क्षेत्रों में किसान भी हड़ताल में उतरे। इससे मोदी-योगी की सरकार को सबक लेनी चाहिए और आम नागरिकों, श्रम कानूनों, संविधान व मौलिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। साथ ही, सीएए-एनपीआर-एनआरसी व लेबर कोड बिल को वापस लेना चाहिए और गिरफ्तार सीएए-विरोधी आंदोलनकारियों को रिहा करना चाहिए।

ग़ौरतलब है कि केंद्रीय कर्मचारियों को सरकार ने चेतावनी दी थी कि अगर वो इस बंद में शामिल होते हैं तो इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा। न सिर्फ उनका वेतन कटेगा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी हो सकती है।

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