रियाद: सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर 'ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन' (ओआईसी) देशों के विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक आयोजित कराने का फैसला किया है। सऊदी अरब के इस कदम से भारत के साथ उनके रिश्तों में खटास पैदा हो सकती है।द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक यह कदम सऊदी अरब ने ऐसे समय में उठाया है जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुआलालंपुर शिखर सम्मेलन से शरीक होने से इनकार कर दिया था। सऊदी अरब के विदेश मंत्री शहजादा फैसल बिन फरहान एक दिन के दौरे पर पाकिस्तान गए और फिर यह घोषणा की गई।

फिलहाल, ओआईसी बैठक की तारीखों को तय किया जा रहा है। इस कदम को रियाद और नई दिल्ली के रिश्ते में नकारात्मक रूप से देखा जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में भारत और सऊदी अरब के बीच रणनीतिक साझेदारी काफी बढ़ी है। दूसरी तरफ पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर अब इस्लामिक देशों के समर्थन की उम्मीद फिर जगी है।

कुआलालंपुर सम्मेलन को मुस्लिम देशों का एक नया संगठन बनाने के प्रयास के रूप में देखा गया था जो निष्क्रिय हो चुके, सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) का विकल्प बन सके। इमरान खान ने मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के 19 से 21 दिसंबर तक होने वाले सम्मेलन में शामिल होने के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया था, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने कथित तौर पर सऊदी अरब के दबाव में आकर सम्मेलन में शामिल नहीं होने का फैसला किया। उनके इस फैसले से पाकिस्तान को घरेलू स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।

एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने कूटनीतिक सूत्रों के हवाले से कहा कि सऊदी अरब पाकिस्तान में आमजन से मिलने वाला समर्थन कभी नहीं खोना चाहता। इस मामले से उसकी जो छवि बनी है, उस को देखते हुए वह अपने विदेश मंत्री को यहां भेजा। सऊदी अरब के विदेश मंत्री पाकिस्तान के सैन्य और असैन्य नेतृत्व से मुलाकात की और यह संदेश दिया कि रियाद ‘पाकिस्तान के साथ अपनी लंबी रणनीतिक साझेदारी’ को महत्व देता है।

पिछले साल सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात इमरान ने खान सरकार को संकट से उबरने के लिए वित्तीय मदद दी थी। वित्तीय मदद के अलावा दोनों देशों में लाखों पाकिस्तानी काम करते हैं, जो हर साल अपनी कमाई के नौ अरब अमेरिकी डॉलर पाकिस्तान भेजते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान ने इस शिखर सम्मेलन के मुकाबले रियाद को तरजीह दी।