नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत सरकार को आगाह किया है कि सुस्त अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जल्द ही कोई कदम उठाना चाहिए क्योंकि ये वैश्विक वृद्धि के लिहाज से सबसे अहम और अग्रणी अर्थव्यवस्था में से एक रहा है। आईएएफ ने अपने वार्षिक समीक्षा में कहा, खपत और निवेश में गिरावट, टैक्स की आमद में कमी सहित दूसरे कारण भी रहे जिसने दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगा दिया।

आईएमएफ की एशिया और पैसिफिक डिपार्टमेंट के रानिल सालगाडो ने सोमवार को पत्रकारों से कहा, 'लाखों लोगों को गरीबी से निकालने के बाद भारत आज आर्थिक सुस्ती के बीच फंस गया है। अभी के हालात को देखते हुए और भारत को फिर से तेजी की राह पर लौटने के लिए तत्काल नीतिगत कदम उठाने होंगे।'

इस दौरान आईएमएफ ने भारत पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट भी जारी की। भारत के लिए परिदृश्य नीचे की ओर जाने का है। ऐसे में आईएमएफ के निदेशकों ने ठोस वृहद आर्थिक प्रबंधन पर जोर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निदेशकों को लगता है कि मजबूत जनादेश वाली नयी सरकार के सामने यह सुधारों को आगे बढ़ाने का एक बेहतर अवसर है। इससे समावेशी और सतत वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा।

इससे पूर्व पिछले हफ्ते भी आईएफएफ की मुख्य अर्थशासत्री गीता गोपीनाथ ने भारत की आर्थिक मंदी पर चिंता जताते हुए कहा था कि इससे सभी हैरान हैं। गोपीनाथ ने वर्ष 2025 तक भारत के 5,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने को लेकर भी संशय जताया था। गोपीनाथ ने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये भारत को पिछले छह साल के छह प्रतिशत की वृद्धि दर के मुकाबले बाजार मूल्य पर 10.5 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि हासिल करनी होगी।

गोपीनाथ ने कहा कि यदि सरकार को 5,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को हासिल करना है तो उसे अपने मजबूत बहुमत का इस्तेमाल भूमि और श्रम बाजार में सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये करना चाहिये। बता दें कि आईएमएफ ने इससे पहले अक्टूबर में भारत की 2019 की आर्थिक वृद्धि की दर को घटाकर 6.1 प्रतिशत और 2020 में इसके सात प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान लगाया।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था जुलाई-सितंबर के बीच पिछले छह सालों में सबसे कम गति से आगे बढ़ी। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है जो पिछले साल 7 प्रतिशत थी।