नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के वार्षिक कार्यक्रम में शिरकत की. पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, 'जब 2014 से पहले के वर्षों में अर्थव्यवस्था तबाह हो रही थी, उस समय अर्थव्यवस्था को संभालने वाले लोग किस तरह तमाशा देख रहे थे, ये देश को कभी नहीं भूलना चाहिए. हमने अर्थव्यवस्था को संभाला. तब अखबारों में किस तरह की बात होती थी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख कैसी थी, इसे आप भली-भांति जानते हैं.'

पीएम मोदी ने कहा कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य कठिन हो सकता है लेकिन असंभव हरगिज नहीं है. आज इस बारे में लोग बात कर रहे हैं और जाहिर है कि यह लोगों के दिमाग में है और कभी न कभी लक्ष्य जरूर पूरे कर लिए जाते हैं. पीएम मोदी ने कहा, हमारी विकास यात्रा में 'एसोचैम' का भी महत्वपूर्ण योगदान है. विकास के लिए हमने मजबूत फैसले लिए हैं. 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लिए मजबूत आधार बना है. सरकार टारगेट तय करती हैं. उसे हासिल करने के लिए रोडमैप बनाती है. ये एक तरीका है लेकिन जब तक पूरा देश मिलकर लक्ष्य तय नहीं करता है, अपनी जिम्मेदारी में सक्रियता नहीं लाता है तो वह सरकारी कार्यक्रम बन जाता है.'

पीएम मोदी ने आगे कहा, '5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का लक्ष्य कहते ही मुझे लगता था कि सुगबुगाहट होगी. इसके लिए मैदान तैयार हो जाएगा. कहा जाएगा कि भारत ये नहीं कर सकता है. एक सोच है लोगों की ऐसी. मुझे खुशी है कि आजकल अर्थव्यवस्था को गति देने वाले लोग इसको लेकर चर्चा करते हैं. लक्ष्य तय हुआ है तो लोगों के इसे पार करने का मन भी हुआ है. ये सरकार की नहीं बल्कि देशवासियों की उपलब्धि है. लाल किले से 2014 में मैंने कहा था कि 2022 तक हम अर्थव्यवस्था में अद्भुत करेंगे. हमारे देश में सामर्थ्य है. उसके भरोसे आगे बढ़ना है तो लक्ष्य, दिशा और मंजिल को जनसामान्य से जोड़ना भी चाहिए. हम भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देना चाहते हैं. डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ाने के लिए ज्यादातर आयामों को फॉर्मल व्यवस्था में लाने की कोशिश कर रहे हैं.'

प्रधानमंत्री ने आगे कहा, 'क्या उद्योग जगत नहीं चाहता था कि देश में टैक्स का जाल कम हो. हमारी सरकार ने दिन-रात एक करके आपकी मांग को पूरा किया. हम जीएसटी लेकर आए. व्यापारी जगत से जो-जो फीडबैक मिला, हम जोड़ते गए. लगातार बदलाव करते रहे. भारत का उद्योग जगत बिजनेस को आसान बनाने की मांग कर रहा था, प्रक्रियाओं को ट्रांसपेरेंट करने की मांग करता था. आपकी मांग पर हमने प्रयास किया है. 70 साल की आदतें बदलने में थोड़ी तकलीफ होती है. भारत ने तीन वर्षों में 'इज ऑफ डूइंग बिजनेस' की रैंकिंग में लगातार सुधार किया है. 2014 में हम 190 में से 142 नंबर पर थे. तीन साल के भीतर हम 63 पर आ गए हैं. ये सब ऐसे ही हुआ होगा क्या. बहुत लोगों की नाराजगी मोल लेनी पड़ती है. बहुत लोगों का गुस्सा सहना पड़ता है. भांति-भांति के आरोपों से गुजरना पड़ता है. ये इसलिए हुआ क्योंकि हमें देश के लिए करना है. अर्थव्यवस्था को पारदर्शी और मजबूत बनाने के लिए उद्योग जगत के लिए किए जा रहे हर फैसले पर सवाल उठाना ही अब कुछ लोगों का राष्ट्रीय कर्तव्य बन गया है.'